श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – सहोदर…(2)
न माटी मिली, न पानी,
न पोषण ही हिस्से आया,
पत्थर चीरकर राह बनाई
तब कहीं अंकुरित हो पाया,
पूर्वजन्म, पुनर्जन्म का मिथक
हमारा सहोदर यथार्थ निकला,
बोधिवृक्ष और मेरा प्रारब्ध
हरदम एक-सा निकला..!
# आपका दिन सार्थक हो #
© संजय भारद्वाज
प्रात: 8:13, 29 मई 2021
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
संघर्ष बिना जीवन नहीं…
प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आदरणीय।
विपरीत परिस्थितियों में बोधिवृक्ष -सा पत्थर तोड़कर अंकुरित हुआ मैं ….. अतुलनीय संघर्ष ……….की कहानी ….