श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
(☆ संजय दृष्टि – शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆ अपने आप में विशिष्ट है। ई- अभिव्यक्ति परिवार के सभी सम्माननीय लेखकगण / पाठकगण श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्रीमती सुधा भारद्वाज जी के इस महायज्ञ में अपने आप को समर्पित पाते हैं। मेरा आप सबसे करबद्ध निवेदन है कि इस महायज्ञ में सब अपनी सार्थक भूमिका निभाएं और यही हमारा दायित्व भी है।)
☆ संजय दृष्टि – यह आदमी मरता क्यों नहीं है? ☆
नागरिकों की रक्षा के लिए आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए सशस्त्र बलों के सैनिकों और आतंकी वारदातों में प्राण गंवाने वाले नागरिकों को श्रद्धांजलि।
हार कबूल करता क्यों नहीं है,
यह आदमी मरता क्यों नहीं है?
धमाकों से उड़ाया जाता है,
परखच्चों में बदल दिया जाता है,
ट्रेनों की छत से खींच कर
पटक दिया जाता है,
‘ड्रंकन ड्राइविंग’ के
जश्न में कुचल दिया जाता है,
दंगों की आग में जलाकर
ख़ाक कर दिया जाता है,
बाढ़ राहत के नाम पर
ठोकर दर ठोकर
कत्ल कर दिया जाता है,
थाने में उल्टा लटकाकर
बेदम पीटा जाता है,
बराबरी की ज़ुर्रत में
घोड़े के पीछे बांधकर
खींचा जाता है,
सारी ताकतें चुक गईं
मारते मारते खुद थक गईं,
न अमरता ढोता कोई आत्मा है,
न अश्वत्थामा न परमात्मा है,
फिर भी जाने इसमें क्या भरा है,
हजारों साल से सामने खड़ा है,
मर मर के जी जाता है,
सूखी ज़मीन से अंकुर -सा
फूट आता है,
खत्म हो जाने से डरता क्यों नहीं है,
यह आदमी मरता क्यों नहीं है?
आम आदमी की अदम्य जिजीविषा को समर्पित यह कविता *’शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’* प्रदर्शनी और अभियान में चर्चित रही। विनम्रता से आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ।
© संजय भारद्वाज, पुणे
यदि आप किसी महाविद्यालय/ कार्यालय/ सोसायटी/ क्लब/ बड़े समूह के लिए इसे आयोजित करना चाहें तो आतंक के विरुद्ध जन -जागरण के इस अभियान में आपका स्वागत है।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603