श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – चमत्कार
कल जो बीत गया,
उसका पछतावा व्यर्थ,
संप्रति जो रीत रहा
उसे दो कोई अर्थ,
बीज में उर्वरापन
वटवृक्ष प्रस्फुटित करने का,
हर क्षण में अवसर,
चमत्कार उद्घाटित करने का,
सौ चोटों के बाद एक वार
प्रस्तर को खंडित कर देता है,
अनवरत प्रयासों से उपजा
एक चमत्कार कायापलट कर देता है,
संभावनाओं के बीजों को
कृषक हाथों की प्रतीक्षा निर्निमेष है,
चमत्कारों के अगणित अवसर
सुनो मनुज, अब भी शेष हैं..!
© संजय भारद्वाज
(प्रातः 5:43 बजे, 21 जून 2021
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वाह! *संभावनाओं को कृषक के हाथों की प्रतीक्षा निर्विशेष है*…… बहुत सकारात्मक कविता, सच में मनुष्य चाहे तो इस चमत्कार का भागीदार तो अवश्य ही बन सकता है।