श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  चयन

 

‘न रूप न रंग, न स्टाइल न स्मार्टनेस, न हाई पैकेज न गवर्नमेंट जॉब, न खानदानी रईस, न जागीरदार..,’ खीजकर उसकी सहेली बोले जा रही थी।..’कैसे हाँ कह दी? आख़िर क्या देखा तुमने इस लड़के में?’

 

‘…साथ चलने और साथ जीने की संभावना..,’  मुस्कराते हुए उसने उत्तर दिया।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 10.45 बजे,27.11.19

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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अलका अग्रवाल

जीवन ऊपरी दिखावे पर नहीं, साथ चलने और जीने की संभावनाओं पर ही जिया जाता है। ??

Rita Singh

बिल्कुल सही ज़िंदगी में यही तो ज़रूरी है।