श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – कर्मण्येवाधिकारस्ते
भीड़ का जुड़ना,
भीड़ का छिटकना,
इनकी आलोचनाएँ,
उनकी कुंठाएँ,
विचलित नहीं करतीं
तुम्हें पथिक..?
पथगमन मेरा कर्म,
पथक्रमण मेरा धर्म,
प्रशंसा, निंदा से
अलिप्त रहता हूँ,
अखंडित यात्रा पर
मंत्रमुग्ध रहता हूँ,
पथिक को दिखते हैं
केवल रास्ते,
इसलिए प्रतिपल
कर्मण्येवाधिकारस्ते!
© संजय भारद्वाज
(प्रातः 4:32 बजे, 22.5.19)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अप्रतिम अभिव्यक्ति-अर्जुन की तरह ध्यान मछली की आँख पर ही रहता है , तभी तो पथिक को सिर्फ रास्ते दिखते हैं जिनपर चलकर वो अपनी मंजिल को पाता है।
जय हो पथिक की