श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – प्यार कभी मरता नहीं है!
वह सस्ता-सा
पुराना होटल,
जहाँ लेकर
उसका हाथ
अपने हाथ में,
पूछा था उसने-
क्या अपने नाम के आगे
मेरा नाम लगाना चाहोगी?
जवाब में उसने अपनी
बोलती निगाहें झुका दी थीं…
बाहर निकल कर,
होटल की पिछली दीवार के
एक पत्थर से एक पत्थर पर
उकेर दिया था उसने
‘प्यार कभी मरता नहीं है…’
फिर ढहा दिया गया वह होटल,
ढहते हर पत्थर और ईंट के साथ
दरकी, किरचीं और ढही थी
उसकी मोहब्बत भी…
बाद में बनने लगा वहाँ
एक आलीशान होटल या मॉल,
ठीक से पता नहीं उसे,
क्योंकि उधर जाने का
उसका मन फिर कभी हुआ ही नहीं…
बनने तो लगा
पर जाने किसकी आह लगी,
प्रॉपर्टी की कोई चिकचिक
या कानून की कोई झिकझिक,
किसी दुखी आँख का नीर
या किसी टूटे मन की पीर,
अब तक नहीं बन सका वह होटल,
आज भी पुराना मलबा पड़ा है,
तिमंज़िला भी पूरा होने की
उम्मीद में खड़ा है…
आज बरसों बाद
यूँ ही गुज़रा उधर से तो
जाने कैसे खिंचते चले गये उसके पैर
पिछवाड़े पड़े उस मलबे की ओर…
सारा मलबा झाड़-झंखाड़,
घास-फूस से ढका पड़ा है था
पर कमाल है,
मलबे की एक ओर
‘प्यार कभी मरता नहीं है’,
उकेरा हुआ पत्थर अब भी खड़ा था..!
© संजय भारद्वाज
(संध्या 5:14 बजे, 18 अक्टूबर 2021)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈