श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – भाषा
(रविवार को ऑनलाइन लोकार्पित होनेवाले कविता-संग्रह क्रौंच से)
‘ब’ का ‘र’ से बैर है,
‘श’ की ‘त्र’ से शत्रुता,
‘द’ जाने क्या सोच
‘श’, ‘म’ और ‘न’ से
दुश्मनी पाले है,
‘अ’ अनमना-सा
‘ब’ और ‘न’ से
अनबन ठाने है,
स्वर खुद पर रीझे हैं,
व्यंजन अपने मद में डूबे हैं,
‘मैं’ की मय में
सारे मतवाले हैं,
है तो हरेक वर्ण पर
वर्णमाला का भ्रम पाले है,
येन केन प्रकारेण
इस विनाशी भ्रम से
बाहर निकाल पाता हूँ,
शब्द और वाक्य बन कर
मैं भाषा की भूमिका निभाता हूँ।
© संजय भारद्वाज
(16.12.2018, रात्रि बजे 11:55 )
मोबाइल– 9890122603
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सार्थक अभिव्यक्ति – शब्द और वाक्य के माध्यम से भाषा की भूमिका निभाने वाले भाषा शिल्पकार को प्रणाम ……
भाषा की भूमिका निभानेवाले भापा- शिल्पी को नमन ……