श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – स्त्रीत्व ☆
उन आँखों में
बसी है स्त्री देह,
देह नहीं, सिर्फ
कुछ अंग विशेष,
अंग विशेष भी नहीं
केवल मादा चिरायंध,
सोचता हूँ काश,
इन आँखों में कभी
बस सके स्त्री देह..,
केवल देह नहीं
स्त्रीत्व का सौरभ,
केवल सौरभ नहीं
अपितु स्त्रीत्व
अपनी समग्रता के साथ,
फिर सोचता हूँ
समग्रता बसाने के लिए
उन आँखों का व्यास
भी तो बड़ा होना चाहिए!
समाज की आँख का व्यास बढ़ाने की मुहिम का हिस्सा बनें। आपका दिन सार्थक हो।
संजय भारद्वाज
[email protected]
प्रात: 9.24 बजे, 5.12.19
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
स्त्री को देखने का दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए – स्त्री केवल देह नहीं है , उसके समग्र रूप के आकलन के लिए आँख का व्यास बढ़ाने की आवश्यकता है , रचनाकार की सोच को नमन