श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – लिप्सा
लिप्सा
राजाओं ने
अपने शिल्प बनवाए,
अपने चेहरे वाले
सिक्के ढलवाए,
कुछ ने
अपनी श्वासहीन देह;
रसायन में लपेटकर
पिरामिड बनाने की
आज्ञा करवाई,
कुछ ने
जीते-जी
भव्य समाधि
की व्यवस्था लगवाई,
काल के साथ
तरीके बदले;
आदमी वही रहा,
अब आदमी
अपने ही पुतले
बनवा रहा है,
खुद ही अनावरण
कर रहा है,
वॉट्सएप से लेकर
फेसबुक, इंस्टाग्राम,
ट्विटर पर आ रहा है,
अपनी तस्वीरों से
सोशल मीडिया
हैंग करा रहा है,
प्रवृत्ति बदलती नहीं है;
मर्त्यलोक के आदमी की
अमर होने की लिप्सा
कभी मरती नहीं है!
© संजय भारद्वाज
(सुबह 11:43 बजे, 4.10.2018)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अमरत्व की लिप्सा ने आज मनुष्य से वो सब करवा दिया है जो नहीं करना चाहिए, उसके लिए तो कर्म ही महान बनाने की आवश्यकता है।सच्चाई उजागर करती रचना।