श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि – चुप्पियाँ…  ??

चुपचाप उतरता रहा

दुनिया का चुप

मेरे भीतर,

मेरी कलम

चुप्पी लिखती रही चुपचाप!

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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Rita Singh

चुप्पी अर्थात अपने भीतर की दुनिया का भ्रमण,
चुप्पी अर्थात अपने विचारों का मंथन,
चुप्पी अर्थात भावों का उद्दीपन,
चुप्पी अर्थात शब्दों का शृंखलाबद्ध होना,
चुप्पी अर्थात नई रचना का जन्म!
चुप्पी गुज़रती है अनेक प्रक्रियाओं से 
बस वह अदृश्य ही रहती है,
शांत किसी सरोवर की तरह।
और आनायास ही प्रवाहित होती है
किसी अल्हड़ अबाध सरिता की तरह।
गहन भाव लिए उभरती है किसी सिंधु की तरह।
प्रिय है हमें कवि तुम्हारी यह चुप्पी!