श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – भूमिका…
उसने याद रखे काँटे,
पुष्प देते समय
अनायास जो
मुझसे, उसे चुभे थे,
मेरे नथुनों में
बसी रही
फूलों की गंध सदा
जो सायास
मुझे काँटे
चुभोते समय
उससे लिपट कर
चली आई थी,
फूल और काँटे का संग
आजीवन है
अपनी-अपनी भूमिका पर
दोनों कायम हैं।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
अपनी-अपनी भूमिका पर दोनों कायम हैं…’
अपनी सोच के आधार पर -सकारात्मक या नकारात्मक..आप तय करें ! विचारणीय!!
फूल और कांटे का संग आजीवन है अपने-अपने गुणधर्म पर दोनों अटल हैं : पुष्प की सुगंध संग कांटों की चुभन–वाह सत्य कथन .. उत्कृष्ट रचना.…
खुशबू व कांटों की चुभन की तरह जीवन में सुख-दुख साथ रहते हैं तभी जीवन का अर्थ पूर्ण होता है।