श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – आत्मकथा
बेहद गरीबी में जन्मा था वह। तरह-तरह के पैबंदों पर टिकी थी उसकी झोपड़ी। उसने कठोर परिश्रम आरम्भ किया। उसका समय बदलता चला गया। अपनी झोपड़ी से 100 गज की दूरी पर आलीशान बिल्डिंग खड़ी की उसने। अलबत्ता झोपड़ी भी ज्यों की त्यों बनाये रखी।
उसकी यात्रा अब चर्चा का विषय है। अनेक शहरों में उसे आइकॉन के तौर पर बुलाया जाता है। हर जगह वह बताता है,” कैसे मैंने परिश्रम किया, कैसे मैंने लक्ष्य को पाने के लिए अपना जीवन दिया, कैसे मेरी कठोर तपस्या रंग लाई, कैसे मैं यहाँ तक पहुँचा..!” एक बड़े प्रकाशक ने उसकी आत्मकथा प्रकाशित की। झोपड़ी और बिल्डिंग दोनों का फोटो पुस्तक के मुखपृष्ठ पर है। आत्मकथा का शीर्षक है ‘मेरे उत्थान की कहानी।’
कुछ समय बीता। वह इलाका भूकम्प का शिकार हुआ। आलीशान बिल्डिंग ढह गई। आश्चर्य झोपड़ी का बाल भी बांका नहीं हुआ। उसने फिर यात्रा शुरू की, फिर बिल्डिंग खड़ी हुई। प्रकाशक ने आत्मकथा के नए संस्करण में झोपड़ी, पुरानी बिल्डिंग का मलबा और नई बिल्डिंग की फोटो रखी। स्वीकृति के लिए पुस्तक उसके पास आई। झुकी नजर से उसने नई बिल्डिंग के फोटो पर बड़ी-सी काट मारी। अब मुखपृष्ठ पर झोपड़ी और पुरानी बिल्डिंग का मलबा था। कलम उठा कर शीर्षक में थोड़ा- सा परिवर्तन किया। ‘मेरे उत्थान की कहानी’ के स्थान पर नया शीर्षक था ‘मेरे ‘मैं’ के अवसान की कहानी।’
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
किसी की भी उत्थान की कहानी उसके अवसान से ही शुरू होती है। अतः, अवसान की कहानी को अपने जीवन का आवश्यक अंग बना के रखना, उसे सदैव स्मृति में बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि वो ही उसके पांव धरातल पर टिकाए रखने के लिए जरूरी है। प्रेरणादायक कहानी। हार्दिक बधाई।