श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – व्याकरण निरपेक्ष होता है..,☆
वह मिला था।
वह मिली थी.!
वह आया था।
वह आई थी..!
वह हँसा था।
वह हँसी थी…!
वह सोया था।
वह सोई थी….!!
कर्ता का लिंग बदलने से
नहीं बदलता क्रिया का अर्थ,
व्याकरण निरपेक्ष होता है..,
कर्ता का लिंग बदलते ही
कर देता है सारे अर्थ वीभत्स,
आदमी मनोरोग से ग्रस्त होता है…!
© संजय भारद्वाज, पुणे
प्रात: 5.01बजे, 11.12.19
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
क्रिया का अर्थ नहीं बदलता किंतु कर्ता का लिंग बदलते ही अर्थ के मायने बदल जाते हैं – मायनों का समीकरण ही बदल जाता है – सार्थक विवेचन