श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – कर्मयोगी
बचपन में उसने
एक बार घड़ी पर
डाल दिया था रुमाल
और सोचा,
समय अब उसका है,
कालांतर में,
समय ने ही सिखाया,
मनुष्य के अधिकार में
केवल उसका कर्म होता है,
जीतता है भाग्य का धनी
कभी-कभार,
पर कर्मयोगी
सदैव विजयी होता है..!
© संजय भारद्वाज
29.12.2021, अपराह्न 12:00 बजे
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
सच है, वैसे तो कर्म और भाग्य में जीत भाग्य की ही होती है। पर, यदि कर्म और भाग्य दोनों मिल जायें तो सोने पर सुहागा हो जाए।
कर्मयोगी कभी भाग्य के भरोसे जीतता नहीं , कर्मयोगी नित कर्म द्वारा जीतने
का आदी होता है, अत: उसकी जीत निश्चित ही होती है। कर्मठ रचनाकार के कर्म को नमन…..