श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – नयी सलीब
पहाड़ का बदन गोदते लोग
सीने पर कीले ठोंकते लोग,
पहाड़ का मांस नोचते लोग
बरछी भाले भोंकते लोग,
जिनका आश्रय रहा
पहाड़ उनसे ही घिरा,
जिसके साये तले पले
उसकी जान लेने पर तुले,
शहर-दर-शहर
गोदने-ठोंकने का यही चित्र,
बस्ती दर बस्ती
नोचने-भोंकने का यही परिदृश्य
वह इतिहास झूठा पढ़ाया था
जिसमें ईसा को
एक बार ही क्रॉस पर लटकाया था..!
© संजय भारद्वाज
(कवितासंग्रह ‘योंही’ से)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
सलीब शब्द ने दिल-दिमाग को मथ डाला । कौनसी ऐसी जगह बची है जो कीलें ठोकने से बची है ? जिस पहाड़ की छत्र -छाया में मनुष्य बसर कर रहा है उसी का नाश करने पर उसे संकोच नहीं होता ! कैसी विडंबना है यह ? येशू को क्या एक बार सूली पर चढ़ाया गया ? इतिहास बदलना होगा ..विचारोत्तेजक लेखन …