श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – अशेष
पूर्ण में से
पूर्ण जाने के बाद
पूर्ण रहता है शेष,
पूर्ण होता है अशेष..!
इच्छाओं में से
सारी इच्छाएँ पूरी होने के बाद
इच्छाएँ रहती हैं शेष,
इच्छाएँ होती हैं अशेष ..!
© संजय भारद्वाज
रात्रि 9:21बजे, 21.1.2022
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
सच में इच्छाएँ दुष्पूर होती हैं।एक के समाप्त होते ही दूसरी पनप उठती है।सुंदर अभिव्यक्तिh
सत्य अभिव्यक्ति एक इच्छा पूर्ति उपरांत क्या दूसरी इच्छा शेष नहीं रहेगी ?
इच्छाएँ अशेष ही होती हैं ,सत्य कथन …