श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 8
मकर संक्रांति :
पौष मास में सूर्यदेव धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यह मकर संक्रांति कहलाता है। खगोलशास्त्र, भूगोल, अध्यात्म, दर्शन सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण घटना है। यह वार्षिक संक्रमण पूरे देश में उत्सव/त्योहार के रूप में आयोजित किया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात, उत्तराखंड में उत्तरायण, असम में भोगाली बिहू, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश में माघी, उत्तर प्रदेश, बिहार में खिचड़ी, पंजाब में लोहड़ी, मकर संक्रांति के ही भिन्न-भिन्न नाम और रूप हैं।
भारत उत्तरी गोलार्द्ध में है। संक्रांति के पूर्व सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होते हैं। दिव्य प्रकाश पुंज सूर्य का उत्तरी गोलार्द्ध के निकट आना उत्तरायण है। उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। यही कारण है की भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी। उत्तरायण अंधकार के आकुंचन और प्रकाश के प्रसरण का कालखंड है। स्वाभाविक है कि इस कालखंड में दिन बड़े और रातें छोटी होंगी। दिन बड़े होने का अर्थ है प्रकाश के अधिक अवसर, अधिक चैतन्य, अधिक कर्मशीलता। हमारा सांस्कृतिक उद्घोष भी है,
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
अंधकार से प्रकाश की यात्रा का अर्थ है एकात्मता। मकर संक्रांति में समुदाय साथ आता है। जो वंचित हैं, उन्हें अपने संचित में से यथाशक्ति कुछ प्रदान करना, दान करना। कालांतर में अपनी जड़ों से कटते और परंपराओं के सही अर्थ से कटते मनुष्य के छोटे होते उनके साथ इसे धार्मिक आचरण के साथ जोड़ दिया गया। शीतलहर के समय आती आता मकर संक्रमण निर्धन को कंबल और घी देने का अद्भुत मार्ग दिखाकर उनका संरक्षण और जाड़े के दिनों में निर्वहन का मार्ग भी दिखाता है। दान द्वारा मोक्ष प्राप्ति का यह सूत्र दृष्टव्य है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम्।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति।
मकर संक्रांति पर बहन-बेटियों को वस्त्र, मिठाई, तिल-गुड़ के व्यंजन भेजने की लोक-परंपरा भी है। ऋतुचक्र से जुड़ी इस परंपरा का निहितार्थ है कि तिल की ऊर्जा और गुड़ की मिठास हमारे मनन, वचन और आचरण तीनों में देदीप्यमान रहे। अपने साथ बहन, बेटी का घर भी भरा रहे।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
तिल की ऊर्जा , गुड़ की मिठास जीवन में बहार ला दे । यह संक्रमण काल जन जीवन में उमंग व तरंग ला दे – ऋतुचक्र परिवार की बहू-बेटियों को परंपराओं को निभाने की ओर उन्मंमुख करे , जीने की संजीवनी प्रदान करे । माँ सरस्वती की आराधना से घर-घर वसंत की बहार हो । रिश्तों में स्निग्धता का संचार हो , हर क्षण नवीनता से भरा-पूरा हो, लोक कल्याण की कामना से उत्स्फूर्त हो जीवन में सुर- सगीत हो , कृष्ण की बाँसुरी की धुन हो , आस्था एवं श्रद्धा हो – हर संकट को दूर करने की क्षमता… Read more »
आज आवश्यक है हम अपने इन पर्वों को सहेजे ,आगामी पीढ़ी को उसकी विशेषताओं से अवगत कराएँ। संस्कृति पर्वों से ही तो जीवित रहती है ।उसका शृंगार ही है उत्सव को मनाना।बहुत सुंदर लेख।
मकर संक्रांति यानि सूर्य का उत्तरायण में आना अर्थात् बड़े दिन, छोटी रात।तमसो मा ज्योतिर्गमय। स्नान, ध्यान, दान-दक्षिणा का महत्व। सकारात्मकता का प्रतीक। बहुत सुंदर आलेख।