श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 9
वसंत पंचमी :
वसंतपंचमी माँ सरस्वती का अवतरण दिवस है। पौराणिक आख्यान है कि ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना तो कर चुके थे पर सर्वव्यापी मौन का कोई हल ब्रह्मा जी के पास नहीं था। तब माँ शारदा प्रकट हुईं। निनाद, वाणी एवं कलाओं का जन्म हुआ। जल के प्रवाह और पवन के बहाव को में स्वर प्रस्फुटित हुआ। मौन की अनुगूँज भी सुनाई देने लगी। आहद एवं अनहद नाद गुंजायमान हुए। चराचर ’नादब्रह्म’ है।
अनादिनिधनं ब्रह्म शब्दतवायदक्षरम् ।
विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया जगतोयतः॥
अर्थात् शब्द रूपी ब्रह्म अनादि, विनाश रहित और अक्षर है तथा उसकी विवर्त प्रक्रिया से ही यह जगत भासित होता है। शब्द और रस का अबाध संचार ही सरस्वती है। शब्द और रस के प्रभाव का एकात्म भाव से अनन्य संबंध है। इसका एक उदाहरण संगीत है। आत्म और परमात्म का एकात्म रूप संगीत है। संगीत को मोक्ष की सीढ़ियाँ माना गया है। महर्षि याज्ञवल्क्य इसकी पुष्टि करते हैं-
वीणावादनतत्वज्ञः श्रुतिजातिविशारदः।
तालश्रह्नाप्रयासेन मोक्षमार्ग च गच्छति॥
वैदिक संस्कृति के नेत्रों में समग्रता का भाव है। कोई पक्ष उपेक्षित नहीं है। यही कारण है कि वसंत पंचमी रति और कामदेव का उत्सव भी है। इस ऋतु में सर्वत्र विशेषकर खिली सरसों का पीला रंग दृष्टिगोचर होता है। प्रकृति का चटक पीला रंग आकर्षित करता है पुरुष को। प्रकृति और पुरुष का एकात्म होना मदनोत्सव है।
समग्रता की अपरिमेय परिधि में स्वदेश, संस्कृति व धर्मनिष्ठा की पतंग गगन की ऊँचाइयों पर होती है। इस ऊँचाई का अनन्य प्रतीक है वीर हकीकत राय। धर्म परिवर्तन न करने के कारण केवल 15 वर्ष की आयु में इस बालक को 1734 में वसंतपंचमी के दिन फाँसी पर लटका दिया गया था। हकीकत राय का स्वाभिमानी शीश सदा ऊँचा रखने के लिए अनेक भागों में इस दिन पतंग ऊँची उड़ाने का चलन भी है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
पतंग के पीछे जो स्वातंत्र्य की उड़ान है. वह बहुत संवेदनशील है.
वसंतोत्सव, मदनोत्सव, मां सरस्वती के प्राकट्य से प्रकृति में नादब्रह्म की उत्पत्ति तथा वीर हकीकत राय के बलिदान से जुड़ी पतंग उड़ाने के चलन अर्थात ऊंची उड़ान व स्वतंत्रता का भाव-बहुत सुंदर आलेख। हार्दिक बधाई।
प्रकृति और पुरुष का एकात्म होना मदनोत्सव है- सत्य कथन
संवेदनशीलता को उजागर करती ‘हकीकत राय’ के स्वाभिमान को पतंग की ऊँची उड़ान से आदरांजलि अर्पित करना रचनाकार की देशभक्ति का द्योतक है– त्रिवार नमन .…
स्वदेश , संस्कृति व धर्म निष्ठा की पतंग को आसमान की ऊँचाई तक पहुँचानेवाले रचनाकार को नमन । वीर हकीकत राय के स्वाभिमान के समक्ष नतमस्तक हैं -वसंत पंचमी का दिन साक्षीदार है इस घटना का …?