श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 11 – गुडी पडवा ??

गुडी पडवा :

नववर्ष सदा नये संकल्पों को ऊर्जा प्रदान करने का दिन होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर की वैश्विक मान्यता के बाद भी हर सांस्कृतिक समुदाय में अपने नववर्ष का विशेष महत्व है। भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को  मनाया जाता है। महाराष्ट्र और अनेक राज्यों में इसे गुड़ी पडवा के रूप में सम्बोधित सम्बोधित किया जाता है।

पडवा, प्रतिपदा का अपभ्रंश है जबकि गुडी ब्रह्मध्वज के लिए उपयोग किया जाता है। लंबे बाँस के एक छोर पर हरा या पीला जालीदार वस्त्र बांधा जाता है। इस पर नीम की पत्तियाँ, आम की डाली, चाशनी से बनी आकृतियाँ और लाल पुष्प बांधे जाते हैं। इन पर तांबे या चांदी का कलश रखा जाता है।  सूर्योदय की बेला में विधिवत पूजन कर इस ब्रह्मध्वज को घर के आगे स्थापित किया जाता है।

माना जाता है कि इस शुभ दिन वातावरण में विद्यमान प्रजापति तरंगें गुडी के माध्यम से घर में प्रवेश करती हैं। ये तरंगेें घर के वातावरण को पवित्र एवं सकारात्मक बनाती हैं।

आधुनिक समय में अलग-अलग सिग्नल्स प्राप्त करने के लिए एंटीना का इस्तेमाल करने वाला समाज इस संकल्पना को बेहतर समझ सकता है। सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा तरंगों की वैज्ञानिकता इस परंपरा को सहज तार्किक स्वीकृति देती है।

बाँस में ब्रह्मध्वज सजाने की प्रथा का भी सीधा संबंध प्रकृति से ही आता है। बांस में गांठे होती हैं। अतः इसे मेरुदंड के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है।

जरी के हरे पीले वस्त्र यानी साड़ी और चोली, नीम और आम की माला, चाशनी के पदार्थों के गहने, कलश याने मस्तक। निराकार अनंत प्रकृति का साकार रूप में पूजन है गुडी पडवा।

कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में इसे उगादि कहा जाता है मान्यता वही कि ब्रह्मदेव ने इस दिन सृष्टि का निर्माण किया था। केरल का विशु उत्सव, असम का मुकोली बिहू , बंगाल का पोहिला बैसाख, तमिलनाडु का पुथांडू , नानकशाही पंचांग का होला मोहल्ला, पंजाब की बैसाखी, सिंधी समाज का चेटीचंड, कश्मीर का नवरेह इत्यादि न्यूनाधिक अंतर के साथ भारतीय नववर्ष के ही भिन्न-भिन्न नाम हैं। 

इसी दिन से चैत्र नवरात्र भी आरंभ होते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य अपनी  बारह राशियों में अपनी परिक्रमा आरंभ करने के लिए मेष राशि में प्रवेश करते हैं। प्रथम नवरात्रि को आदिशक्ति प्रकट हुई थी। उनके कहने से ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी। तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मनुष्य अवतार लेकर पृथ्वी पर सजीवों को जन्म दिया। विज्ञान भी कहता है कि जलचर पहला सजीव था। नवमी तिथि को भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जन्म लिया।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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माया कटारा

गुडी पडवा की अत्यंत मौलिक जानकारी , सृष्टि रचनाकार द्वारा सृजित सृष्टि की विधिवत् विजय गाथा – नववर्ष शुभारंभ अनुपमेय विवेचन …..

अलका अग्रवाल

गुड़ी पाडवा की सार्थक, सटीक जानकारी। सृष्टि का आरंभ और अच्छी तरंगों को प्राप्त करने के लिए गुड़ी को बांधना तथा नव वर्षारम्भ। अप्रतिम आलेख।

लतिका

सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत और परंपराओं का विश्लेषण।