श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 13 – हरतालिका एवं गणगौर ??

हरतालिका-  सुहागिनों (और कुमारिकाओं द्वारा भी) द्वारा किया जाता विशेषकर उत्तर भारत का यह प्रसिद्ध पर्व  है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाने वाला यह हरतालिका की महाराष्ट्र में भी विशेष मान्यता है। अखंड सौभाग्य के लिए किये जाने वाले इस व्रत में अंतर्निहित सामाजिकता देखिए कि सम्बंधित महिला की बीमारी की स्थिति में दूसरी स्त्री  उसके लिए यह व्रत रख लेती है। अनेक बार पत्नी के अस्वस्थ होने पर पति यह व्रत करता है।

गणगौर- यह मुख्यत: राजस्थान में  मनाया जाता है। गणगौर, गण और गौर ( शिवजी और गौरा जी) की पूजा है। पौराणिक गाथा है कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को गौरा जी अपने पीहर आती हैं। आठ दिन बाद ईसर जी (शिवजी) उन्हें विदा कराने आते हैं। चैत्र शुक्ल तृतीया को गौरा जी विदा होती हैं। इस प्रकार गणगौर  अठारह दिनों तक चलता है।

इसे सुहागिन और कुंवारी दोनों करती हैं। चूँकि यह युगलपूजा है, दो महिलाएँ मिलकर पूजती हैं। स्त्री  सामासिकता एवं एकात्मता का समन्वित प्रतिरूप है। यही कारण है कि गणगौर में भी यही भाव प्रतिबिंबित होते हैं। सुहागिनें अपने पीहर और ससुराल दोनों में सुख- समृद्धि बनाये रखने और अखंड सौभाग्य के लिए गणगौर पूजती हैं। कुंवारियाँ सच्चे व अच्छे जीवनसाथी के लिए गणगौर करती हैं।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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लतिका

आंचलिक विविधताओं से जुड़ा देश। धन्यवाद!?

अलका अग्रवाल

बहुत सुंदर हरितालिका तीज यदि उत्तर भारत में मनाई जाती है तो गण गौर राजस्थान में। हर अंचल की अपनी अपनी विशेषता के साथ वहां के त्योहारों को मनाने का चलन भी है।