श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 16 – छठ पूजा
छठ पूजा-
छठ या षष्ठी पूजा विशेषकर बिहार और झारखंड का सबसे बड़ा पर्व है। षष्ष्ठी माता को समर्पित चार दिवसीय छठ पूजन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है। नहाय-खाय पहला दिवस है। द्वितीय दिवस को खरना अथवा लोहंडा नाम से जाना जाता है। तीसरे दिन सूर्यास्त के समय सूर्यनारायण को अर्घ्य दिया जाता है। अंतिम दिन प्रात:काल सूर्योदय के समय सूर्यदेव को उषा अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। छठ जाग्रत देवता सूर्य की उपासना वाला पर्यावरण स्नेही त्योहार है।
केवल उगते को सलाम करने की संकुचित मनोवृत्ति के समय में यह उदात्त भारतीय दर्शन ही है जो उदय एवं अस्त दोनों समय सूर्यदेव को अर्घ्य देकर प्रणाम करता है।
विभिन्न पर्वों में एकात्मता-
भारत विविध धर्मों एवं विविध मतों से सज्जित भूभाग है। दुनिया में कहीं से कोई भी आया हो, वैदिक एकात्मता के रंग में रंँगता गया। वस्तुत: आदर्श सदा समान रहते हैं, काल, पात्र, परिस्थितिनुसार नैतिकता बदलती रहती है। स्वाभाविक है कि सबके पर्व, त्योहारों में भी विविधता हो। तब भी विविधता में वैदिक दर्शन सबको एक सूत्र में बाँधता है। यही कारण है कि अथर्ववेद कहता है,
।।मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा।
सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।2।।
(अथर्ववेद 3.30.3)
अर्थात : भाई, भाई से द्वेष न करें, बहन, बहन से द्वेष न करें, समान गति से एक-दूसरे का आदर- सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
बेहद सुंदर जीवन दर्शन। कृतज्ञता व्यक्त करने का छठ पर्व।धन्यवाद!??
उगते व अस्त होते सूर्य देव की पूजा का पर्व छठ-सुंदर विश्लेषण।
पर्व अनेक ,भाव एक