श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 17
ईसा मसीह को तत्कालीन व्यवस्था ने सूली पर चढ़ा दिया था। ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार 40 दिन बाद ईस्टर को ईसा मसीह पुनर्जीवित हो गए। समय साक्षी है कि समाज दुर्जनों की सक्रियता नहीं अपितु सज्जनों की निष्क्रियता से अधिक प्रभावित होता है। समाज सक्रिय होकर सामने आए तो पुनर्जागरण में समय नहीं लगता। ईसा का पुनर्जीवित होना सज्जनों की एकता और एकात्मता का प्रतीक है। कहा गया है, ‘ यू आर नेवर अलोन। यू आर इटरनली कनेक्टेड विथ एवरीवन।’
हर त्योहार आचार और व्यवहार में एकात्मता का उदात्त दर्शन लेकर आता है। गुरुनानक जयंती को प्रकाशपर्व के रूप में मनाया जाता है। ‘एक ओंकार’ का आदर्श, ज्योति से दूसरी ज्योति प्रज्ज्वलित करना। ‘राम दी चिड़ियाँ, राम दा खेत। चुग लो चिड़ियों, भर-भर पेट,’ का गुरु नानक उवाच एकात्मता का ही एक आयाम है।
भगवान महावीर का जन्म कल्याणक उत्सव सम्यकता के दर्शन का उत्सव है। दीपावली को उनका निर्वाण दिवस माना जाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण भी दीपावली को ही हुआ था। अलौकिक आत्माओं का निर्वाण भी जगत को प्रकाशवान कर जाता है।
तथागत गौतम बुद्ध का तो पूरा जीवन एक अद्भुत परिक्रमा है। उनका जन्म, ज्ञान की प्राप्ति तथा महापरिनिर्वाण एक ही दिन वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।
एक माह के रोज़ा के बाद ईद उल फित्र मनाई जाती है। इस अवसर पर निर्धन वर्ग को दान देने की परंपरा है ताकि वे भी ईद मना सकें। यही एकात्मता है। पारसी नववर्ष पतेती पर भी गरीबों को दान दिया जाता है। यह भी आनंद का विस्तार या एकात्मता ही है।
जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय यमुना नदी उफान पर थी। वसुदेव द्वारा टोकरी में कान्हा को रखकर नदी पार करते समय शेषनाग का अपने फन से भगवान को भीगने से बचाने की पौराणिक गाथा भी पंचमहाभूतों की एकात्मता है। वैदिक दर्शन केवल बौद्धिक चर्वण तक नहीं रुकता। यहाँ क्रियान्वयन ही कर्म है। क्रियावान ही विद्वान है। ‘य क्रियावान स: पंडित।’ यही कारण है कि कृषिकार्य में उपयोगी बैल के लिए महाराष्ट्र में बैल पोला मनाया जाता है। साक्षात कालरूप माने गये नाग के लिए जैसे नागपंचमी पूरी श्रद्धाभाव के साथ मनाई जाती है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
वैश्विक उदात्तता का दर्शन!
हृदय से धन्यवाद आदरणीय।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबके त्योहारों में एकात्मकता के दर्शन होते हैं। बहुत सुंदर आलेख।
हृदय से धन्यवाद आदरणीय।
मानव और उदारता हर धर्म की सीख है।
हृदय से धन्यवाद आदरणीय।