श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 23 ??

नौचंदी मेला-  मेरठ में प्रतिवर्ष लगने वाला नौचंदी मेला हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। नवचंडी का अपभ्रंश कालांतर में नौचंदी हो गया।  नौचंदी देवी  एवं हजरत बाले मियाँ की दरगाह एक दूसरे के पास हैं। मंदिर में भजन और दरगाह पर कव्वाली का अद्भुत दृश्य इस मेले में देखने को मिलता है। घंटी और शंख के बीच अजान की आवाज़ और मंत्रों के उच्चारण का इंद्रधनुष इस मेले में खिलता है। नौचंदी मेला सामासिकता और एकात्मता का जीता जागता उदाहरण है। यह मेला चैत्र मास की नवरात्रि से एक सप्ताह पहले आरंभ होता है तथा एक माह तक चलता है।

शहीद मेला-  1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय की घटना है। 14 अगस्त 1942 को मैनपुरी के बेवर नामक स्थान पर कुछ छात्रों ने ध्वज यात्रा निकाली। छात्रों और देशप्रेमी जनसमुदाय ने थाने पर कब्जा कर लिया। अतिरिक्त पुलिस बल बुलाकर इन्हें वहाँ से हटाया गया। अगले दिन 15 अगस्त 1942 को थाने पर भीड़ ने भारत का झंडा फहरा दिया। पुलिस ने गोलियां चलाईं। इस कांड में 14 वर्षीय कृष्ण कुमार, 42 वर्षीय जमुना प्रसाद त्रिपाठी, 40 वर्षीय सीताराम गुप्त  शहीद हो गए।

शहीद अशफाकउल्ला का एक प्रसिद्ध शेर है,

शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।

संभवत: ऐसी ही कोई भावना रही होगी कि इस बलिदान की स्मृति में 1972 में स्वर्गीय जगदीश नारायण त्रिपाठी ने ‘शहीद मेला’ आरंभ किया। स्वाधीनता के युद्ध में शहीद हुए लोगों के स्मृति में यह मेला 19 दिनों तक चलता है। यहाँ शहीद मंदिर भी है। शहीदों की फोटो प्रदर्शनी, शहीदों के परिजनों का सम्मान ,स्वतंत्रता सेनानी सम्मान, रक्तदान , राष्ट्रीय एकता सम्मेलन इसे विशिष्ट बनाते हैं।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
image_print
3 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

5 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Rita Singh

मेरठ और शहीद मिलेगी जानकारी आज पहली बार पढ़ने को मिली।धन्यवाद हमें इस जानकारी स्वागत कराने के लिए।

लतिका

सांप्रदायिक एकता और शहीदों की स्मृति में मेले का अभूतपूर्व वर्णन!

माया कटारा

अभूतपूर्व मेलों की जानकारी प्रदत्ता के समक्ष नतमस्तक हूँ – दिल में आदरांजलि देने की भावना जाग्रत हुई- जीवन रूपी किताब में एक नया पन्ना अंंकित हुआ-हृदय से आभार .…

अलका अग्रवाल

मेरठ का नौचंदी मेला जो हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है और शहीद मेला एकात्मता व सामासिकता का प्रतीक हैं। सुंदर जानकारी संजय जी।

वीनु जमुआर

एकात्मता के वैदिक अनुबंध…चिंतन काअद्भुत उपक्रम !??