श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – लघुकथा- जो बोओगे वही काटोगे
…मुझे कोई पसंद नहीं करता। हरेक, हर समय मेरी बुराई करता है।
.. क्यों भला?
…मुझे क्या पता! वैसे भी मैंने सवाल किया है, तुमसे जवाब चाहिए।
… अच्छा, अपना दिनभर का रूटीन बताओ।
… मेरी पत्नी गैर ज़िम्मेदार है। सुबह उठाने में अक्सर देर कर देती है। समय पर टिफिन नहीं बनाती। दौड़ते, भागते ऑफिस पहुँचता हूँ। सुपरवाइजर बेकार आदमी है। हर दिन लेट मार्क लगा देता है। ऑफिस में बॉस मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करता। बहुत कड़क है। दिखने में भी अजीब है। कोई शऊर नहीं। बेहद बदमिज़ाज और खुर्राट है। बात-बात में काम से निकालने की धमकी देता है।
…सबको यही धमकी देता है?
…नहीं, उसने हम कुछ लोगों को टारगेट कर रखा है। ऑफिस में हेडक्लर्क है नरेंद्र। वह बॉस का चमचा है। बॉस ने उसको तो सिर पर बैठा रखा है।
… शाम को लौटकर घर आने पर क्या करते हो?
… बच्चों और बीवी को ऑफिस के बारे में बताता हूँ। सुपरवाइजर और बॉस को जी भरके कोसता हूँ। ऑफिस में भले ही होगा वह बॉस, घर का बॉस तो मैं ही हूँ न!
…अच्छा बताओ, इस चित्र में क्या दिख रहा है।
…किसान फसल काट रहा है।
…कौनसी फसल है?
…गेहूँ की।
…गेहूँ ही क्यों काट रहा है? धान या मक्का क्यों नहीं?
…कमाल है। इतना भी नहीं जानते आप! उसने गेहूँ बोया, सो गेहूँ काट रहा है। जो बोयेगा, वही तो काटेगा।
…यही तुम्हारे सवाल का जवाब भी है।
बोने से पहले विचार करो कि क्या काटना है। नागफनी बोकर, छुईमुई पाना संभव नहीं है।
© संजय भारद्वाज
मोबाइल– 9890122603
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सोच बदलने से जग बदलेगा।?
धन्यवाद आदरणीय।
लघुकथा माध्यम बनी है यह सत्य समझाने के लिए कि जो बोओगे वही तो काटोगे, दोषारोपण की प्रवृत्ति से बदलाव असंभव है …..प्रश्नोत्तर शैली….