श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 25
गया मेला- श्राद्धकर्म के महत्व पर इस लेख में पहले चर्चा हो चुकी है। गयाश्राद्ध पर वैदिक परंपरा में विशेष श्रद्धा रखती है। तभी तो कहा गया है, ‘श्रद्धया इदं श्राद्धं’ अर्थात जो श्रद्धा से किया जाय, वही श्राद्ध है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक 16 दिन का गया मेला होता है। वैदिक दर्शन दशगात्र और षोडशी संपीड़न तक मृतात्मा को प्रेत की संज्ञा देता है। संपीड़न पश्चात इस आत्मा को पितर के रूप में जाना जाता है।
रामायण मेला- वैदिक होना अर्थात हर विचार को अभिव्यक्त होने की स्वतंत्रता देना, हर मत को समाहित करने की उदारता होना, अनेकता से एकात्मता की विराट सदाशयता होना।
ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 164वें सूत्र की 46वीं ऋचा का एक अंश कहता है,
‘एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति।’
सत्य एक है जिसे ज्ञानी भाँति-भाँति प्रकार से कहते हैं।
इस ऋचा की प्रत्यक्ष प्रतीति है चित्रकूट और अयोध्या में लगनेवाला रामायण मेला। सुदूर के संत-महात्मा, धर्माचार्य, रामकथा मर्मज्ञ इस में सम्मिलित होते हैं। रामलीला होती है, प्रवचन होते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
रामायण मेला का विचार 1961 में सर्वप्रथम डॉ राम मनोहर लोहिया ने दिया था। 1973 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने चित्रकूट से इसका आरंभ किया। बाद में 80 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र ने अयोध्या में भी इसका आरंभ करवाया। डॉ. लोहिया के विचारसूत्र के अनुसार विश्व की सारी रामायण इस मेले में हों। केंद्र में तुलसीकृत रामचरितमानस हो। विभिन्न भाषाओं की रामायण का पाठ और पारायण भी हो। विषय के मर्मज्ञ इस पर चर्चा करें। संस्कृत में महर्षि वाल्मीकि की रामायण, तमिल की कंबरामायण, असमिया में कथा रामायण, बांग्ला में कृत्तिवास रामायण, मराठी में भावार्थ रामायण, गुजराती में राम बालकिया, पंजाबी में गोबिन्द रामायण, कश्मीरी में रामावतार चरित, मलयालम में रामचरितम् और ऐसी असंख्य रामायण के एक छत के नीचे होने की कल्पना ही रोमांचित कर देती है।
पनी विशिष्ट दृष्टि के चलते रामायण मेला, देश का अद्भुत मेला है। साथ ही इसमें अनुभव की जाती एकात्मता भी अद्भुत है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
श्राद्ध मेला जो पितरों के लिए श्रद्धा से किया जाये और राम मेला जिसमें श्रीराम की कथा का प्रवचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन भी होता है तथा जो एकात्मता का प्रतीक है की अद्भुत जानकारी।
धन्यवाद आदरणीय।
गया मेला- श्राद्ध कर्म – श्रद्धा से किये गये कर्म को परिभाषित करता लेखन
सच एक है जिसका प्रकटीकरण अलग-अलग है चित्रकूट मेले एवं रामायण मेले की अभूतपूर्व विशेष जानकारी हेतु साधुवाद
वैदिक होना अर्थात् हर विचार को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता होना, हर मत को समाहित करने की उदारता होना ……विश्लेषणात्मक अभिव्यक्ति?
धन्यवाद आदरणीय।
रामायण पर चर्चा का विचार ही भारतीय संस्कृति का मर्म है। ?
धन्यवाद आदरणीय।