श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 37
रामेश्वरम धाम-
तमिलनाडु के रामनाथपुरम जनपद में रामेश्वर धाम स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध के लिए लंका जाते समय शिवलिंग की स्थापना की थी। रामेश्वरम धाम बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर से घिरा हुआ एक टापू है।
यह वही स्थान है जहाँ रामसेतु बना था। धनुष्कोडि से जाफना तक 48 किलोमीटर लम्बा यह सेतु था। नासा के सैटेलाइटों द्वारा खींची गई तस्वीरों में यह समुद्र के भीतर एक पतली रेखा के रूप में दिखाई देता है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी रामसेतु का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि 5 दिन में रामसेतु तैयार हो गया था। वाल्मीकि रामायण में रामसेतु का वर्णन मिलता है जिसकी लम्बाई सौ योजन थी और चौड़ाई दस योजन।
दशयोजनविस्तीर्णं शतयोजनमायतम्।ददृशुर्देवगन्धर्वा नलसेतुं सुदुष्करम्।।
वाल्मीकि रामायण (6/22/76)
नल और नील नामक दो वानर सेनानी रामसेतु के मुख्य शिल्पी और वास्तुविद थे। किंवदंती है कि उन्होंने इसके निर्माण के लिये प्रयुक्त पत्थरों पर ‘श्रीराम’ लिखवाया था। जिस समुद्र को लांघना साक्षात श्रीराम के लिए कठिन था, वह रामनाम के पत्थरों से बने सेतु से साध्य हो गया। इसीलिए लोकोक्ति प्रचलित हुई कि ‘राम से बड़ा राम का नाम।’ व्यक्ति नहीं गुणों की महत्ता का प्रतिपादन वही संस्कृति कर सकती है जो पार्थिव नहीं सूक्ष्म देखती हो।
आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित श्रृंगेरीपीठ रामेश्वरम में है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
राम से बड़े राम के नाम को प्रमाणित करनेवाले रामसेतु के शिल्पकार थे वानर सेनानी नल और नील – भारतवर्ष कै गुणों को प्रतिपादित करती संस्कृति के
दीपस्तंभ- रामेश्वरम धाम को नमन-– सूक्ष्म अवलोकन हेतु अभिवादन💐
आदरणीय, प्रतिक्रिया हेतु हृदय से धन्यवाद।
सत्य है राम से बड़ा राम का नाम है । हमारे देश के इतिहास में ऐसे कितने स्थल हैं और इन सबको इतिहास न मानकर उन्हें माइथोलॉजी नाम दे दिया।
आदरणीय, प्रतिक्रिया हेतु हृदय से धन्यवाद।