श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 38
केदारनाथ-
उत्तराखंड के चार तीर्थस्थानों की देवभूमीय चार धाम के रूप में प्रतिष्ठा है। इनमें बद्री विशाल तो हैं ही, साथ में केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री सम्मिलित हैं। इन तीर्थों की यात्रा वामावर्त होती है अर्थात बाईं ओर आरंभ कर आगे चला जाता है।
केदारनाथ उत्तराखंड के गुप्तकाशी क्षेत्र में स्थित है। पौराणिक आख्यान के अनुसार महिष का रूप धारण कर भगवान शंकर जब पाताल-लोक में प्रवेश करने लगे तो परिजनों की हत्या के पाप से पांडुकुल को मुक्त करने के लिए भीम ने महेश का पृष्ठ भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर ने पांडवों को दर्शन देकर पापमुक्त किया। इस स्थान पर महिष के पृष्ठ भाग के रूप में प्राकृतिक शीला में विराजमान महादेव के विग्रह की आराधना होती है। यह वैदिक संस्कृति की एकात्मता ही है जो कभी महिष में ईश्वरीयता का दर्शन कर अवतरित होती है तो कभी ईश्वर, वराह का अवतार लेते हैं।
गंगोत्री-
गंगोत्री अमृतवाहिनी गंगा जी का उद्गम स्थल है। यह क्षेत्र उत्तरकाशी में है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार भागीरथी ने इसी स्थान पर पृथ्वी को स्पर्श किया था। प्राचीन समय में यहाँ गंगा जी की साकार स्वरूप में ही पूजा होती थी। कालांतर में मंदिर का निर्माण हुआ। इस क्षेत्र में नदियों की धारा का प्रवाह अकल्पनीय है। उल्लेखनीय है कि एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी 1977 में कोलकाता से बद्रीनाथ तक गंगा जी के प्रवाह के विरुद्ध जलमार्ग से यात्रा करने के अभियान पर निकले थे। नंदप्रयाग के बाद गंगा जी के अद्भुत जलप्रवाह के आगे नतमस्तक होकर हिलेरी ने अपना अभियान रोक दिया था।
यमुनोत्री-
यमुनोत्री पावन यमुना जी का उद्गम स्थल है। यह क्षेत्र उत्तरकाशी में है। यमुनोत्री हिमनद से लगभग 5 मील नीचे गर्म पानी के स्रोत मिलते हैं। ऐसे दो स्रोतों के बीच एक शिला पर स्थित है यमुनोत्री का मंदिर। इन स्रोतों में पानी इतना गर्म होता है कि प्रसाद के रूप में सूर्यकुंड में आलू या चावल पकाने की परंपरा है।
सनातन संस्कृति माटी, जल, अग्नि, आकाश, वायु को काया का घटक मानती है। जलस्रोतों का सम्मान और मानवीकरण, उदार व सदाशय वैदिक एकात्मता का साक्षात उदाहरण है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
सुंदर जानकारी
केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तीर्थस्थानो की अद्भुत अलौकिक क्षमता का परिचय कराती सूक्ष्म जानकारी हेतु अभिवादन
जलस्रोतों का सम्मान तथा मानवीकरण दृष्टव्य है.….….
उत्तराखंड के चार तीर्थ स्थलों में केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री की यात्रा अद्वितीय व अनुपम है।
विशेष रूप से महत्वपूर्ण आलेख! 💦