श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – विश्व पृथ्वी दिवस विशेष – हरी-भरी ??

मैं निरंतर रोपता रहा पौधे

उगाता रहा बीज उनके लिए,

वे चुपचाप, दबे पाँव

चुराते रहे मुझसे मेरी धरती..,

भूल गए वे, पौधा केवल

मिट्टी के बूते नहीं पनपता,

उसे चाहिए-

हवा, पानी, रोशनी, खाद

और ढेर सारी ममता भी,

अब बंजर मिट्टी और

जड़, पत्तों के कंकाल लिए,

हाथ पर हाथ धरे

बैठे हैं सारे शेखचिल्ली,

आशा से मुझे तकते हैं,

मुझ बावरे में जाने क्यों

उपजती नहीं

प्रतिशोध की भावना,

मैं फिर जुटाता हूँ

तोला भर धूप,

अंजुरी भर पानी,

थोड़ी- सी खाद

और उगते अंकुरों को

पिता बन निहारता हूँ,

हरे शृंगार से

सजती-धजती है,

सच कहूँ, धरती ;

प्रसूता ही अच्छी लगती है!

 * विश्व पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएँ *

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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माया कटारा

विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर आपके उद्गार – सच कहूँ –
धरती प्रसूता ही अच्छी लगती है -शब्दातीत अभिव्यक्ति 🌿🙏