श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – प्रतीक्षा
अंजुरि में भरकर बूँदें
उछाल दी अंबर की ओर,
बूँदें जानती थीं
अस्तित्व का छोर,
लौट पड़ी नदी
की ओर..,
मुट्ठी में धरकर दाने
उछाल दिए आकाश की ओर,
दाने जानते थे
उगने का ठौर
लौट पड़े धरती की ओर..,
पद, धन, प्रशंसा, बाहुबल के
पंख लगाकर
उड़ा दिया मनुष्य को
ऊँचाई की ओर..,
……….,………..,
….तुम कब लौटोगे मनुज..?
© संजय भारद्वाज
श्रीविजयादशमी 2019, अपराह्न 4.27 बजे।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
ऊँचाई पर पहुँचकर मनुष्य लौटना भूल जाता है, अहं से घिरा व्यक्ति लौटना और लौटाना क्या जाने वह तो मुँह के बल ही गिरता है।