श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – भाषा
नवजात का रुदन;
जगत की पहली भाषा,
अबोध की खिलखिलाहट;
जगत का पहला महाकाव्य,
शिशु का अंगुली पकड़ना;
जगत का पहला अनहद नाद,
संतान का माँ को पुकारना;
जगत का पहला मधुर निनाद,
प्रसूत होती स्त्री, केवल
एक शिशु को नहीं जनती,
अभिव्यक्ति की संभावनाओं के
महाकोश को जन्म देती है,
संभवतः यही कारण है;
भाषा स्त्रीलिंग होती है..!
अपनी भाषा में अभिव्यक्त होना अपने अस्तित्व को चैतन्य रखना है।….आपका दिन चैतन्य रहे।
© संजय भारद्वाज
(रात्रि 3:14 बजे, 13.9.19)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
अद्भुत शिशु चित्रांकन, शब्दों के समुचित चयन द्वारा वाक्य रचना भाषा को स्त्रीलिंग मानना सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति – चैतन्य प्रदान करनेवाले रचनाकार की रचना – शक्ति को नमन 💐