श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – पर्यावरण विमर्श-3 – प्रश्न
बड़ा प्रश्न है-
प्रकृति के केंद्र में
आदमी है या नहीं?
इससे भी बड़ा प्रश्न है-
आदमी के केंद्र में
प्रकृति है या नहीं?
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© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
प्रकृति के केन्द्र मे मनुष्य है या नहीं -यक्ष प्रश्न
बिना प्रकृति के मनुष्य जीएगा कैसे ? असंभव
प्रकृति के केंद्र में मनुष्य सदैव से है क्योंकि वो उस पर निर्भर है।हाॅं, ये बात अलग है कि वो स्वयं अनजान बन उसी डाल को काट रहा है जिस पर वो बैठा है यानि प्रकृति का लगातार दोहन कर रहा है।