श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – पर्यावरण विमर्श- 4 – गिलहरी
गिलहरी,
फल को कुतर-कुतर,
मुँह में दबाती है बीज
फलदार वृक्ष का,
ताकती है चहुँ ओर
टुकर-टुकर..,
लम्बी दौड़ लगाती है,
पोली धरती तलाशती है,
माटी की कोख में
बीज धर आती है,
विज्ञान कहता है-
अपने असहाय भविष्य के लिए
इकट्ठा करती है बीज,
मंदबुद्धि जानवर है,
भूल जाती है..,
आदमी के हाथ,
पेड़ का धड़
सिर से अलग करने के
विशाल यंत्र लिए
आगे बढ़ते हैं,
नन्हीं गिलहरी
सामने अड़ जाती है…,
मैं जानता हूँ
असहाय भविष्य की
निर्वसन धरती
वह देख पाती है, फलतः
बार-बार बीज जुटाती है,
बार-बार दौड़ लगाती है,
बार-बार गर्भाधान कर आती है….
धरती की आँख में
उभरता है चित्र-
बौने आदमी और
आदमकद गिलहरी का..!
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
गिलहरी जीवन का निष्पाप सत्य!👌👌