श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – चिरंजीव
महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में वटसावित्री आज पूर्णिमा को मनाई जाती है। आज वटवृक्ष का पूजन होता है। इस संदर्भ में कोरोनाकाल में जन्मी यह कविता देखिए-
लपेटा जा रहा है
कच्चा सूत
विशाल बरगद
के चारों ओर,
आयु बढ़ाने की
मनौती से बनी
यह रक्षापंक्ति,
अपनी सदाहरी
सफलता की गाथा
सप्रमाण कहती आई है,
कच्चे धागों से बनी
सुहागिन वैक्सिन,
अनंतकाल से
बरगदों को
चिरंजीव रखती आई है..!
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
बरगद को सुहागिन वैक्सीन अनंतकाल से चिरंजीवी बनाती रही है, बढ़िया उक्ति।