श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका – भाग – 12 ??

दुनिया के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां एक बार जाने के बाद वे आपके मन में बस जाते हैं और उनकी याद कभी नहीं मिटती। मेरे लिए भारत एक ऐसा ही स्थान है। जब मैंने यहां पहली बार कदम रखा तो मैं यहां की भूमि की समृद्धि, यहां की चटक हरियाली और भव्य वास्तुकला से, यहां के रंगों, खुशबुओं, स्वादों और ध्वनियों की शुद्ध, संघन तीव्रता से अपने अनुभूतियों को भर लेने की क्षमता से अभिभूत हो गई। यह अनुभव कुछ ऐसा ही था जब मैंने दुनिया को उसके स्याह और सफेद रंग में देखा, जब मैंने भारत के जनजीवन को देखा और पाया कि यहां सभी कुछ चमकदार बहुरंगी है।

– किथ बेलोज़ (मुख्य संपादक, नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी

‘ मैं भारत के अनेक राज्यों में घूमा. वहाँ मैंने एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा जो भिखारी हो, चोर हो. ऐसी विलक्षण सम्पदा देखी है मैंने इस देश में, ऐसे उच्चतम मौलिक विचार, इतने काबिल/गुणी व्यक्ति देखे हैं कि मुझे नहीं लगता कि हम कभी इस देश को गुलाम बना पाएँगे, जब तक कि हम इस देश की अध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को नष्ट ना कर दें, जो इस देश की वास्तव में रीढ़ है।

और इसलिए मेरा प्रस्ताव है कि इस देश की वर्षों पुरानी ‘शिक्षा प्रणाली‘ और यहाँ की ‘संस्कृति‘ को बदल दिया जाए, क्यूंकि जब भारतीय ये सोचेंगे कि जो कुछ भी विदेशी है और ब्रिटेन का है, वह अच्छा और बेहतर है उनके स्वयं से, तब ये भारतीय अपना अपनी पौराणिक संस्कृति और स्वाभिमान को खो बैठेंगे और तब ये लोग वो बन जाएंगे जो हम उन्हें बनाना चाहते हैं, एक वास्तविक गुलाम भारत !‘

 – भारत का दौरा करने के बाद 1835 में ब्रिटिश संसद में दिए गये अँग्रेज मैकाले के भाषण के अंश। ( ये दस्तावेज संग्रहित हैं ) 

भारत में बीस लाख देवी-देवता हैं और वे सभी की पूजा करते हैं। धर्म के मामले में बाकी सभी देश कंगाल हैं, भारत ही करोड़पति है।

 – मार्क ट्वेन

क्रमशः…

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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