श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका – भाग – 16
लोकसंस्कृति, सृष्टि को युग्मराग मानती है। सृष्टि, प्रकृति और पुरुष के युग्म का परिणाम है। स्त्री प्रकृति है। स्त्री एकात्मता की दूत है। मायके से ससुराल आती है, माँ से, मायके से स्वाभाविक रूप से एकात्म होती है। इसी एकात्म भाव से ससुराल से एकरूप हो जाती है। स्त्रियाँ केवल समझती नहीं अपितु माँ बनकर विस्तार करती हैं एकात्मता का। लोक में वस्तुओं के विनिमय की पद्धति का विकास महिलाओं ने बहुतायत से किया। आवश्यकता पड़ने पर पुरुषों से छिपकर ही सही, कथित निचले वर्ग या विजातीय स्त्रियों के साथ लेन-देन किया। त्योहारों में मिठाई के आदान-प्रदान में विधर्मियों के साथ व्यवहार की वर्जना को स्त्रियों ने सूखे अनाज के बल पर कुंद किया। तर्क यह कि अनाज, धरती की उपज है और धरती तो सबके लिए समान है। यह अद्वैत दृष्टि, यह एकात्मता अनन्य है।
मनुष्य विकारों से मुक्त नहीं हो सकता। स्वाभाविक है कि लोक भी इसका अपवाद नहीं हो सकता लेकिन वह गाँठ नहीं बांधता। किसी कारण से किसी से द्वेष हो भी गया तो उसकी नींव पक्की होने से पहले विरोधी से होली पर गले मिल लेता है, दिवाली पर धोक देने चला जाता है। जैन दर्शन का क्षमापना पर्व भी इसी लोकसंस्कृति का एक गरिमापूर्ण अध्याय है।
लोक और प्रकृति में समरसता है, एकात्म है। लोक ‘क्षिति, जल, पावक, गगन, सरीरा, पंचतत्व से बना सरीरा’ के अनुसार इन्हीं तत्वों को सृष्टि के विराट में देखता है। सूक्ष्म को विराट में देखना, आत्मा को परमात्मा का अंश मानना, एकात्मता की इससे बेहतर कोई परिभाषा हो सकती है क्या?
क्रमशः…
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत