श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका – भाग – 17 ??

प्रकृति के साथ की इसी एकात्मता के चलते महाराष्ट्र में ‘देवराई’ अर्थात संरक्षित वनों की परंपरा बनी। कोंकण और अन्य भागों में देवराई के वृक्षों को हाथ नहीं लगाया जाता। देश के पहाड़ी अंचलों में भी ‘देव-वन’ हैं, जिनमें रसोईघर की तरह चप्पल पहन कर आना वर्जित है।

राजस्थान का बिश्नोई समाज काले मृग के रूप में अपने पूर्वज का पुनर्जन्म देखता है। प्राणी को हत्या से बचाने का यह विश्वास प्रकृति के घटकों के संरक्षण में अद्भुत भूमिका निभाते हैं।

आदिवासियों की अनेक जनजातियाँ, पेड़ की नीचे गिरी सूखी लकड़ी और टपके फल के सिवा पेड़ से कुछ नहीं लेतीं।  कैम्प फायर में पेड़ की हरी डाली तोड़कर डालने वाले और शौकिया शिकार कर किसी भी प्राणी को भूनकर खाने के शौकीन ‘आदिवासी बचाओ’ के कथित प्रणेता इस लोक-संस्कृति की सतह तक भी नहीं पहुँचते, तल तो बहुत दूर की बात है।

मनोविज्ञान कहता है कि मनुष्य के मानसपटल पर जमेे चित्र उसके व्यवहार में दीखते हैं। जैसे लेखक अपने शब्दों या चित्रकार अपने मन के चित्रोेंं को कैनवास पर उतारता है। इसे सीधे लोकवास में देखिए। छोटे-बड़े हर घर के आगे गेरू-चूने से प्रकृति के पात्रों के चित्र बने हैं। जो पिंड में, वही बिरमांड में।

इसी की अगली प्रचिती है कि लोक के व्यवहार में  सकारात्मकता दिखती है। लोकसंवाद में कुछ वाक्यांशों/ वाक्यों का प्रयोग देखिये- दीपक के अस्त होने को ‘दीया बड़ा होना’ कहना, दुकान बंद करने को ‘दुकान बढ़ाना’ कहना, प्रस्थान के समय जाने का उल्लेख न करते हुए ‘ आता हूँ’ कहना आदि।

क्रमशः…

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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