हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जाता साल और आता साल ☆ श्री संजय भारद्वाज
श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – जाता साल और आता साल ☆
(जाता साल’ और ‘आता साल’ पर कुछ वर्ष पूर्व लिखी दो रचनाएँ साझा कर रहा हूँ।)
एक
☆ जाता साल ☆
(संवाद 2019 से)
करीब पचास साल पहले
तुम्हारा एक पूर्वज
मुझे यहाँ लाया था,
फिर-
बरस बीतते गए
कुछ बचपन के
कुछ अल्हड़पन के
कुछ गुमानी के
कुछ गुमनामी के,
कुछ में सुनी कहानियाँ
कुछ में सुनाई कहानियाँ
कुछ में लिखी डायरियाँ
कुछ में फाड़ीं डायरियाँ,
कुछ सपनों वाले
कुछ अपनों वाले
कुछ हकीकत वाले
कुछ बेगानों वाले,
कुछ दुनियावी सवालों के
जवाब उतारते
कुछ तज़ुर्बे को
अल्फाज़ में ढालते,
साल-दर-साल
कभी हिम्मत, कभी हौसला
और हमेशा दिन खत्म होते गए
कैलेंडर के पन्ने उलटते और
फड़फड़ाते गए………
लो,
तुम्हारे भी जाने का वक्त आ गया
पंख फड़फड़ाने का वक्त आ गया
पर रुको, सुनो-
जब भी बीता
एक दिन, एक घंटा या एक पल
तुम्हारा मुझ पर ये उपकार हुआ
मैं पहिले से ज़ियादा त़ज़ुर्बेकार हुआ,
समझ चुका हूँ
भ्रमण नहीं है
परिभ्रमण नहीं है
जीवन परिक्रमण है
सो-
चोले बदलते जाते हैं
नए किस्से गढ़ते जाते हैं,
पड़ाव आते-जाते हैं
कैलेंडर हो या जीवन
बस चलते जाते हैं।
दो
☆ आता साल ☆
(संवाद 2020 से)
शायद कुछ साल
या कुछ महीने
या कुछ दिन
या….पता नहीं;
पर निश्चय ही एक दिन,
तुम्हारा कोई अनुज आएगा
यहाँ से मुझे ले जाना चाहेगा,
तब तुम नहीं
मैं फड़फड़ाऊँगा
अपने जीर्ण-शीर्ण
अतीत पर इतराऊँगा
शायद नहीं जाना चाहूँ
पर रुक नहीं पाऊँगा,
जानता हूँ-
चला जाऊँगा तब भी
कैलेंडर जन्मेंगे-बनेंगे
सजेंगे-रँगेंगे
रीतेंगे-बीतेंगे
पर-
सुना होगा तुमने कभी
इस साल 14, 24, 28,
30 या 60 साल पुराना
कैलेंडर लौट आया है
बस, कुछ इसी तरह
मैं भी लौट आऊँगा
नए रूप में,
नई जिजीविषा के साथ,
समझ चुका हूँ-
भ्रमण नहीं है
परिभ्रमण नहीं है
जीवन परिक्रमण है
सो-
चोले बदलते जाते हैं
नए किस्से गढ़ते जाते हैं,
पड़ाव आते-जाते हैं
कैलेंडर हो या जीवन
बस चलते जाते हैं।
आपको और आपके परिवार को 2020 के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603