श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – अकाल मृत्यु हरणं
गोल होते कान,
वाचा का थकना,
फटी सफेदी वाली
आँखों का शून्य तकना,
बात-बात में
हाथ उठाकर
आशीर्वाद देने का गोत
कुछ संकेत देने लगती है
ले जाने से पहले
बूढ़ी मौत..!
संकेत देते हैं वे भी,
ग़लती न होने पर भी
जो झिड़कियाँ खाते हैं,
अपशब्दों की बौछार पर
खिसियाए-से हँसते जाते हैं,
अन्याय को अनुकंपा मान
मिलती रोटी ठुकराने से डरते हैं,
ये वे जवान हैं जो-
जीते-जी रोज मरते हैं..,
पर…,
ये जो मर जाते हैं,
सड़कों पर तपाक से
अपनी हाईस्पीड बाइक
खुद डिवाइडर से टकराए,
रेल की पटरियों पर कट जाते हैं
मोबाइल कान से चिपकाए,
लहरों और बहाव की अनदेखी कर
‘सेल्फी फॉर डेथ’ खिंचवाते हैं,
फिर इन्हीं लहरों पर सवार
बेबसी में शव बनकर आते हैं..,
काश…,
काश होते कुछ संकेत
इन बावरों के लिए भी.., कि
बढ़ती गति तो सड़क थम जाती,
पटरियों पर कान की स्वर तरंगें
स्पीकर बन खतरे के विरुद्ध चिल्लाती,
होता कुछ ऐसा कि लहरें
इन्हें जीते-जी उछाल बाहर फेंक आती,
यदि घट पाता ऐसा कुछ
तो ये नादान बेमौत न मरते
और अपने जाने के बाद
अपनों को रोज़ाना
तिल-तिल मरने को
विवश भी न करते !
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
संकेत समझने में भी देरी हो जाती हैं. लेकिन दुनिया इन हादसों को अनदेखा ना करें. बेहतरीन कविता! 🙏🏻👏🏻👏🏻
धन्यवाद आदरणीय।
बुढ़ापे की कमियों के कारण होती बेमौत। सच्चाई दर्शाती कविता।
धन्यवाद आदरणीय।