श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – लघुकथा – लैंस
….दादू, स्कैनर ख़राब हो गया है। कैमरा की इमेज कैप्चर कैपेसिटी ख़त्म हो गई है। स्टोरेज भी फुल हो गया है। अब फोटो नहीं आएगी।
वह सोचने लगा, आँख का लैंस तो ताउम्र फोटो खींचता है। बल्कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, दिखना भले कम होता जाये, स्कैनिंग की क्षमता बढ़ती जाती है। स्टोरेज कभी फुल नहीं होता। चित्र धुँधलाते ज़रूर हैं पर याद का लेप लगाने पर गहरे होकर उभरते हैं।
…दादू, टेक इट ईजी। कूल…आजकल टेक्नोफास्ट एज है। लेटेस्ट टेकनीक है। इंजीनियरिंग इज ऑन इट्स टॉप। कल ठीक करा लाऊँगा।
सचमुच तकनीक और इंजीनियर में फ़र्क तो है, उसने सोचा और आँख का लैंस हौले से मूँद लिया।
क्रमशः…
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत