श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
🕉️ मार्गशीष साधना🌻
आज का साधना मंत्र – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
संजय दृष्टि – प्रकृति
प्रकृति ने चितेरे थे चित्र चहुँ ओर,
मनुष्य ने कुछ चित्र मिटाए,
अपने बसेरे बसाए,
प्रकृति बनाती रही चित्र निरंतर,
मनुष्य ने गेरू-चूने से
वही चित्र दीवारों पर लगाए,
प्रकृति ने येन केन प्रकारेण
जारी रखा चित्र बनाना,
मनुष्य ने पशुचर्म, नख, दंत सजाए,
निर्वासन भोगती रही,
सिमटती रही, मिटती रही,
विसंगतियों में यथासंभव
चित्र बनाती रही प्रकृति,
प्रकृति को उकेरनेवाला,
प्रकृति के ख़ात्मे पर तुला,
मनुष्य की कृति में
अब नहीं बची प्रकृति,
मनुष्य अब खींचने लगा है
मनुष्य के चित्र..,
मैं आशंकित हूँ,
बेहद आशंकित हूँ..!
© संजय भारद्वाज
(प्रातः 10:21 बजे, 21.8.2019)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
मनुष्य की कृति में अब नहीं बची प्रकृति -वास्तविकता है