हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ठूँठ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – ठूँठ

हर ठूँठ

उगा सकता है

हरी टहनियाँ

अबोध अंकुर

खिलखिलाती कोंपले

और रंग-बिरंगे फूल,

चहचहा सकें जिस पर

पंछियों के झुंड..,

बस चाहिए उसे

थोड़ी सी खाद

थोड़ा सा पानी

और ढेर सारा प्यार,

कुछ यूँ ही-

हर आदमी चाहता है

पीठ पर हाथ

माथा सहलाती अंगुलियाँ

स्नेह से स्निग्ध आँखें

और हौसला बढ़ाते शब्द,

अपनी-अपनी भूमिका है,

तुम सब जुटे रहो

ठूँठों को हरा करने की मुहिम में

और मैं कोशिश करूँगा

कोई कभी ठूँठ हो ही नहीं!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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