श्री अरुण कुमार डनायक
(श्री अरुण कुमार डनायक जी महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है “कुमायूं – 11 – जिम कार्बेट राष्ट्रीय वन अभ्यारण्य ”)
☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं #76 – 11 – जिम कार्बेट राष्ट्रीय वन अभ्यारण्य ☆
नैनीताल में एक रात बिताकर और हिमालय दर्शन करते हुए हम जिम कार्बेट राष्ट्रीय वन अभ्यारण्य की ओर चल दिए । नैनीताल के ताल और वन शिखरों को पार करते हुए हम धीरे-धीरे मैदान की ओर बढ़ रहे थे । लेकिन मैदान भी हरे भरे जंगलों और खेतों में उगती हुई नई रबी फसल की हरियाली की छटा बिखेर रहे थे । मैं सदैव सोचता हूँ कि रंग बिरंगे फूलों और पत्तों को अपने आँचल में समेटे हुए भारत भूमि के जंगल अद्भुत हैं और यह विश्व भर में इसीलिए भी विलक्षण हैं क्योंकि हमारे जंगलों में रंग-बिरंगी वनस्पतियों की अनेक प्रजातियाँ हैं, हमारी पृकृति एकरंगी नहीं है और इसीलिये हमारी संस्कृति भी बहुरंगी है ।
कार से यह मनमोहक यात्रा लगभग तीन घंटे की थी और इस दौरान हमने तीन पर्यटक स्थलों का भी भ्रमण किया । नैनीताल से मैदान उतरते ही पहला मनभावक दृश्य कोशी नदी के जल प्रपात का था । थोड़े कम घने जंगलों के मध्य कोई आधा किलोमीटर पैदल चलने के बाद हम इस जलप्रताप के निकट पहुंचे । शांत प्रकृति के बीच चीतल और लंगूरों के दर्शन हुए तो कुछ पक्षी भी चहचहाते हुए दिख गए । जल प्रताप वन क्षेत्र के अन्दर है और जाहिर है सरकार को शुल्क दिए बिना प्रकृति की इस अनुपम नैसर्गिक कृति का आनंद आप नहीं ले सकते । कोशी नदी, उत्तराखंड की प्रमुख पवित्र नदियों मे से के है और कौसानी के पास से उद्गमित होकर अल्मोड़ा , नैनीताल रामनगर होकर बहती है और आगे रामगंगा से मिल जाती है। यह छोटा सा मनलुभावन जलप्रपात इसी नदी में कलकल करता बहता है । जलप्रपात जंगल की सीमा के अन्दर है तो इसीलिये बिना टिकट प्रवेश हो नहीं सकता । हम पैदल भी चले और रास्ते भर सागौन के घने वृक्षों के मध्य जंगली मुर्गियां व चीतल को निहारते हुए आगे बढ़ते रहे ।
कुछ दूरी पर हनुमानघाट है और यहाँ निर्माणाधीन मंदिर परिसर में हनुमान की चित्ताकर्षक मूर्तियाँ उनके विभिन्न स्वरूपों यथा पंचमुखी हनुमान, बाल हनुमान, राम भक्त हनुमान आदि को दर्शाती हैं और ऊपर की ओर सुन्दरकाण्ड से प्रेरित अनेक भित्तिचित्र हनुमान की महिमा और सीता के खोज के उद्देश्य से उनकी लंका यात्रा को दर्शाते हैं ।
इन दोनों स्थलों को पारकर हम कालाडुंगी पहुँच गए । रास्ते में हमने एक लम्बी और पक्की बाउंड्री वाल भी देखी और फिर जिम कार्बेट का निवास स्थान, उनका अंग्रेजी स्थापत्य की छवि लिए बँगला भी देखा , जिसे अब इस महान शिकारी, पर्यावरणविद और भारत प्रेमी की याद में संग्रहालय में बदल दिया गया है । मैं जब महाविद्यालय में अध्ययनरत था तो हमारी अंग्रेजी की पाठ्य पुस्तक में एक लम्बी कहानी थी ‘मेन इटर्स आफ कुमायूं’, समय के साथ शिकार की इस कहानी को तो मैं भूल गया पर उसके लेखक जिम कार्बेट की बहादुरी के किस्से मन में बसे रहे और आज उन्ही जिम कार्बेट के बंगले के सामने मैं खडा था, जहाँ इस मानवता और पशुओं के प्रेमी ने अपनी बहन के साथ भारत के आज़ाद होने तक निवास किया था । जिम कार्बेट की चर्चा चंद पंक्तियों में करना उनके भारत प्रेम के प्रति अन्याय होगा । मैंने संग्रहालय के द्वारा संचालित सुवेनियर शाप से जिम कार्बेट द्वारा लिखी गई दो पुस्तकें Man Eaters of Kumon व मेरा हिन्दुस्तान (My ।nd।a का हिन्दी अनुवाद ) खरीदी । इस यात्रा वृतांत को लिखते हुए मैं इन दो पुस्तकों को भी पढ़ रहा हूँ और इस महान व्यक्तित्व पर आगे अलग से चर्चा करने का ख्याल मन में उपजने लगा है तो चलिए शिकारी जिम कार्बेट को यहीँ छोड़कर हम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान का एक चक्कर लगा लें ।
जिम कार्बेट राष्ट्रीय वन अभ्यारण्य के बारे में केवल इतना बताना चाहता हूँ कि 1936 में जब यह अस्तित्व में आया तो इसे हैली नेशनल पार्क नाम दिया गया और फिर 1955-1956 में, जिम कॉर्बेट को श्रद्धांजलि और वन्य जीवन के संरक्षण में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए, इसे अपना वर्तमान, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, नाम मिला। मैं बाघ परियोजना को समर्पित इस उद्द्यान के बारे में इससे ज्यादा चर्चा इसलिए नहीं करना चाहता क्योंकि यह जानकारी तो आपको गूगल महाराज भी दे देंगे । मैं तो आपसे अपनी उस एक मात्र जंगल सफारी की यात्रा का अनुभव साझा करूंगा जिसका भरपूर आनंद मैंने 28 नवम्बर 2020 की हल्की पर चुभन वाली ठण्ड में सुबह सबेरे छह बजे से दस बजे तक लिया । आनलाइन के इस युग में जंगल सफारी के लिए पहले से ही आरक्षण करवाना अनिवार्य है । कोरोना के इस संक्रमण काल में भी जब मैंने रामनगर पहुँच कर इसकी तहकीकात की तो पता चला कि अगले दिन की सफारी मिलना मुश्किल ही है । शुक्र था कि हमने रुपये 3800/- देकर एक जिप्सी पहले ही आरक्षित करवा ली थी । इस लागत में जिप्सी का किराया 2200/- रूपए व वनक्षेत्र में प्रवेश का शुल्क 1080/- शामिल है शेष राशि बुकिंग एजेंट के खाते में । हमें गाइड की सुविधा वन विभाग के माध्यम से मिल गई और इसका शुल्क 800/- रुपये अलग से था । झिरना, ढेरा, ढिकाला आदि प्रवेश द्वारों से इस राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश किया जा सकता है पर हमने बुकिंग एजेंट की सलाह पर बिजरानी गेट से वन गमन सुनिश्चित किया । तराई क्षेत्र के इस घने जंगल के दर्शन तो रामनगर से ही होने लगते है । सागौन का सघन वृक्षारोपण बाहरी इलाके में है और सागौन के ऐसे लम्बे व मोटे तने युक्त वृक्ष मैंने मध्य प्रदेश के विभिन्न जंगलों में, जहाँ के सागौन की गुणवत्ता सबसे बेहतर है, भी नहीं देखे । जंगल के अन्दर तो वनस्पतियों की अनेक प्रजातियाँ हैं, ज्यादातर वृक्ष साल के हैं, फिर हल्दू, जामुन, आम, सेमल, बरगद आदि भी बहुतायत में हैं । ऊँचे घने पेड़ों के नीचे लेंटाना व कुरी की झाडियां और घांस सारे जंगल को घेरे हुए हैं। हमारे गाइड ने बताया कि लेंटाना की झाड़ियाँ तेजी से फैलती हैं और इनके उन्मूलन के ‘असफल प्रयास’ वन विभाग द्वारा समय समय पर होते रहते हैं । यह लेंटाना की झाडिया हमने अपने बचपन में भी खूब देखी थी । इसकी बाडी लगाकर बाग़ बगीचों की रक्षा होती थी और लाल पीले रंग के गुच्छेदार फूल व काले रंग के फल किसी काम के न थे । हाँ इसकी बेंत अच्छी बनती थी जिसका उपयोग हमारे शिक्षक व पिताजी हमें सुधारने के लिए अक्सर करते थे । जंगल में अन्दर जाने के पहले हमारे गाइड ने हमें बताया था कि इस पार्क की खासियत रॉयल बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी और घड़ियाल के साथ अन्य प्रजातियों के जंगली जानवर जैसे काला भालू, हिरणों की विभिन्न प्रजातियाँ, बार्किंग डियर, सांभर, चीतल, श्याम मृग आदि और गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की उपलब्धता है और आपको इन सभी को देखने का सुनहरा अवसर अवश्य मिलेगा । इसके अलावा यहाँ पक्षियों में ग्रेट चितकबरा हॉर्नबिल, सफेद पीठ वाला गिद्ध,मोर, हॉजसन बुशचैट, उल्लू आदि भी दीखते हैं । पर हमारी किस्मत कोई ख़ास अच्छी न थी । हमने बाघ के पदचिन्ह तो खूब देखे पर वनराज हमसे शर्माते ही रहे । गणेश के स्वरुप हाथी तो खैर दिखे ही नहीं बस दो चार ऐसे पेड़ों को हमने देखा जिन्हें रात में हाथियों ने धाराशाई कर दिया था । लेकिन इतनी निराशा की बात भी न थी हम चीतल, सांभर, बार्किंग डियर, जंगली मुर्गियां, सफ़ेद गिद्ध, मोर आदि को उनके ही घर में विचरते हुए देखने में कामयाब हुए । राम गंगा नदी और दीमक की अनेक विशालकाय बाम्बियाँ हमें जगह जगह दिखी पर मगरमच्छ, और किंग कोबरा जैसे सरीसृप देखने से हम वंचित ही रहे । कोई तीन -चार घंटे हम इस शानदार जंगल में बिताकर वापस अपने ठिकाने क्लब महिंद्रा के जिम कार्बेट रिसोर्ट में वापस आ गए और दोपहर कैसे बिताई जाय इसकी चर्चा रिसार्ट के गतिविधि विशेषज्ञ से करने पहुँच गए ।
© श्री अरुण कुमार डनायक
42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39