यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 13 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
डागी वेस्ट
उम्दा नस्ल के प्यारे डागी पालना अच्छा शौक है। डागी के बहाने मालिक का भी सुबह शाम घूमना सुनिश्चित हो जाता है । मानसिक तनाव कम होता है। परिवार एक प्राणी का आश्रयदाता बनता है। खुशी मिलती है । बदले में इस बेवफा जमाने में, वफादारी मिलती है ।
पर इस सब से जुड़ी जो बड़ी समस्या है, वह है डागी की पाटी की । लोग कतई अपने कुत्तों को इस तरह ट्रेंड नही करते कि वे शौचालय में ही पाटी करें । अपने यहां बड़ी शान से मंहगी चेन में बंधे कुत्ते को लेकर कालोनी में साहब या मैडम निकलते हैं । फिर वह टामी, रोजी, ब्रूनो, ब्रेवो या जो कुछ भी हो, आपकी या अन्य किसी की भी मंहगी से मंहगी कार के टायर को सूंघता है और यदि वह गंध उसे भा गई तो निसंकोच आपके सामने ही एक टांग उठाकर निवृत हो लेता है । किसी के भी गेट के सम्मुख तक, कहीं भी पोट्टी करवाने में कुत्ते के मालिक जरा भी शर्मिंदा नहीं होते।
पर यहां देखने आता है की डाग वेस्ट मालिक की जबाबदारी है । लोग अपने डागी के साथ बाकायदा एक क्लीनिग स्टिक और पाली बैग लेकर चलते हैं । और डाग वेस्ट का प्रापर डिस्पोजल करते हैं । है न अच्छी अनुकरणीय बात ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈