श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है  “कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -6 – नंदा देवी – अलमोड़ा  ☆

अल्मोड़ा नगर उत्तराखंड  राज्य के कुमाऊं मंडल  में स्थित है। यह समुद्रतल से 1646 मीटर की ऊँचाई पर लगभग  12 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह नगर घोड़े की काठी के आकार की पहाड़ी की चोटी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। कोशी  तथा सुयाल नदियां नगर के नीचे से होकर बहती हैं।

अल्मोड़ा  की चोटी के पूर्वी भाग को तेलीफट, और पश्चिमी भाग को सेलीफट के नाम से जाना जाता है। चोटी के शीर्ष पर, जहां ये दोनों, तेलीफट और सेलीफट, जुड़ जाते हैं, अल्मोड़ा बाजार स्थित है। यह बाजार बहुत पुराना है और सुन्दर कटे पत्थरों से बनाया गया है। इसी नगर के बीचोंबीच उत्तराखंड राज्य के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” स्थित है जिसका विशेष धार्मिक महत्व है। इस मंदिर में “देवी दुर्गा” का अवतार विराजमान है । समुन्द्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर चंद वंश की “ईष्ट देवी” माँ नंदा देवी को समर्पित है । माँ दुर्गा का अवतार, नंदा देवी भगवान शंकर की पत्नी है और पर्वतीय आँचल की मुख्य देवी के रूप में पूजनीय हैं । दक्षप्रजापति की पुत्री होने की मान्यता के कारण कुमाउनी और गढ़वाली उन्हें पर्वतांचल की पुत्री मानते है ।

नंदा देवी मंदिर के पीछे कई ऐतिहासिक कथाएं हैं  और इस स्थान में नंदा देवी को प्रतिष्ठित  करने का श्रेय चंद शासको का है। सन 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से माँ नंदा देवी की सोने की मूर्ति लाये और उस मूर्ति को मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्टर परिसर, अल्मोड़ा) में स्थापित कर दिया , तब से चंद शासको ने माँ नंदा को कुल देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया । इसके बाद बधाणकोट विजय करने के बाद राजा जगत चंद  ने माँ नंदा की वर्तमान प्रतिमा को मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित करा दिया । सन 1690 में तत्कालीन राजा उघोत चंद ने पार्वतीश्वर और चंद्रेश्वर नामक “दो शिव मंदिर” मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए । सन 1815 को मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को कमिश्नर ट्रेल ने चंद्रेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठित करा दिया ।

अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है। पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं । नंदादेवी भाद्रपद के कृष्णपक्ष में जब अपनी माता से मिलने पधारती हैं तो इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है और  राज राजेश्वरी नंदा देवी की यात्रा  को राजजात या नन्दाजात कहा जाता है । आठ दिन चलने वाली इस  “देवयात्रा” का समापन  अष्टमी के दिन मायके से विदा कराकर  किया जाता है । राजजात या नन्दाजात यात्रा के लिए देवी नंदा को दुल्हन के रूप में सजाकर  डोली में बिठाकर एवम् वस्त्र ,आभूषण, खाद्यान्न, कलेवा, दूज, दहेज़ आदि उपहार देकर अपने मायके से पारंपरिक रूप में विदाई देकर  ससुराल भेजते हैं । नंदा देवी राज जात यात्रा हर बारह साल के अंतराल में एक बार आयोजित की जाती है ।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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