श्रीमती वीनु जमुआर
“एक भिखारिन की मौत” निश्चित ही एक सार्थक मनोवैज्ञानिक कल्पना है जिसकी चर्चा आदरणीया श्रीमती वीनु जमुआर जी ने इस समीक्षा में किया है। इस नाटक के सन्दर्भ में ई-अभिव्यक्ति में पूर्व प्रकाशित संस्मरण का लिंक दे रहे हैं जो श्री संजय भारद्वाज जी के रंगमंचीय अनुभव से आपको परिचित कराएगा।
☆ संजय दृष्टि – समय कैसे पंख लगाकर उड़ जाता है! ☆
श्री संजय भारद्वाज जी की पुस्तकें “एक भिखारिन की मौत” एवं अन्य पुस्तकें अमेज़न पर निम्न लिंक पर उपलब्ध हैं:
1- एक भिखारिन की मौत, गंगा स्तुति और अन्य एकांकियाँ, रंग बिरंगा मेरा छाता, बूँद-बूँद मोती
2- एक भिखारिन की मौत, योंही, चहरे, मैं नहीं लिखता कविता
– संपादक ई अभिव्यक्ति
रंगमंच ☆ “एक भिखारिन की मौत” – एक दर्शक की दृष्टि से ☆ श्रीमती वीनु जमुआर
विश्व रंगमंच दिवस की संध्या!
आयोजन – बहुचर्चित नाटक ‘एक भिखारिन की मौत ‘ के अंग्रेज़ी संस्करण का विमोचन !
जिसकी यादें मन के किसी कोने में अभी भी ठक-ठक करती हुई जीवित हैं। यह शाम ही क्यों, छः या सात वर्ष पूर्व जब ‘एक भिखारिन की मौत’ का मंचन होने जा रहा था , उस दिन भी यह प्रश्न सम्मुख खड़ा था –
मृत्यु तो जीवन का सबसे बड़ा शाश्वत सत्य है फिर एक मौत पर इतनी चर्चा ? मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के मन का यही प्रश्न , मेरे नाटक प्रेमी हृदय की उत्सुकता बनी और मुझे खींच ले गयी थी नाट्य भवन की ओर ! और जो देखा था वह आज भी जहन में वैसे ही धरा है, संजोया हुआ !
मानव मनोविज्ञान जिसे हम अंग्रेजी में Human Psychology कहते हैं न – उसका अद्भुत प्रयोग !!
प्रयोग मैं इसलिए कह रही हूँ कि हर चीज़ के दो पहलू होते हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष। इस नाटक में पुरुष द्वारा सहज छुपायी जाने वाली परोक्ष वृत्ति को दृश्यमान प्रत्यक्ष में परिवर्तित करने के लिए किए गए जद्दोजहद को नाटककार नें सशक्त संवादों के माध्यम से जिस प्रकार दर्शाया है उसे अपने आपमें एक प्रयोग ही कहा जा सकता है। नाटक के दो प्रमुख पात्र, संपादक रमेश अय्यर एवं उपसंपादिका अनुराधा चित्रे के मध्य ‘हिप्नोटिज्म’ के विषय में होते संवाद कहीं दूर…हमें अपने समय के प्रसिद्ध जादूगर पी सी सरकार, के लाल आदि के सम्मोहन की दुनिया में खींच ले जाते हैं। हिप्नोटिज्म द्वारा परोक्ष को दर्शकों के समक्ष दिखाने की यह प्रक्रिया निश्चित ही नाटक को एक नया आयाम देती है।
जग जाहिर है, मनुष्य अपनी कमज़ोरियाँ प्रगट नही करना चाहता और फिर पुरुष की बात हो, वह भी समाज में सभ्य कहे जाने वाले पुरुष सत्ता की बात हो तो यह और कठिन हो जाता है।
मैं यहाँ नाटककार को बधाई देना चाहूँगी कि स्वयं एक पुरुष होते हुए प्रकृति के इस प्राकृतिक नकारात्मक वृत्ति को नाटक के माध्यम से समाज के समक्ष दर्शाने की कोशिश की है।
स्त्री के प्रति यह नाटककार के आदर, सम्मान एवं संवेदनशीलता को दर्शाता है।
वहीं दूसरी ओर इस दर्दभरी घटना से व्यावसायिक लाभ प्राप्त करने हेतु अति महत्वाकांक्षी लोगों द्वारा किए जाने वाले घृणित प्रयासों को भी रचनाकार ने बखूबी दर्शाया है।
समाज के विभिन्न वर्गों के पात्रों का चयन यथा- नज़रसाहब, एसीपी भोसले, प्रोफेसर पंत सर, रमणिकलाल एवं युवा पच्चीस वर्षीय मधु वर्मा आदि के सशक्त संवाद को माध्यम बना कर रचनाकार ने अपनी बात दर्शकों के सम्मुख बड़ी ही सशक्त तरीक़े से रखी है। और यही सशक्त संवाद इस नाटक के प्राण हैं। नाटक के सभी पात्रों ने अपनी भूमिकाएँ बड़ी ही बेबाक़ी से निभायी हैं।
मूल नाटक के लेखक,निर्देशक तथा संपादक के पात्र का अभिनय करने वाले कलाकार श्री संजय भारद्वाज स्वयं एक बहुआयामी रचनाकार हैं। विविध विधाओं में सृजन के संग आप एक मँजे हुए रंगकर्मी हैं जिन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है।
अंग्रेज़ी अनुवाद लखनऊ विश्वविद्यालय के इंग्लिश एंड माॅडर्न युरोपियन लेंग्वेज़ेज विभाग की एसोसियेट प्रोफेसर डाॅ मीनाक्षी पाहवा, जो स्वयं एक अनुभवी रंगकर्मी हैं, द्वारा किया गया है। बचपन से रंगमंच से जुड़ी डाॅ मीनाक्षी न सिर्फ़ कुशल रंगकर्मी हैं, वे एक सफल लेखिका, वक्ता एवं सटीक भावानुवादों के लिए भी जानी जाती हैं। A Fulbright Scholar to New York University, she was a Mellon Fellow at Harvard University and Charles Wallace India Trust Fellow at Cambridge.
‘एक भिखारिन की मौत ‘ का मंचन उनके अनुवादित शब्दों के दर्पण में हम पुनः मंचित होते देख पायेंगे – यह मेरा विश्वास है।
© श्रीमती वीनु जमुआर
पुणे
संपर्क- 8390540808
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अत्यंत प्रभावशाली नाटक का बहुत ही सारगर्भित, सटीक व सूक्ष्म समीक्षा की है आदरणीया दीदी आपने। आदरणीय संजय जी, डा. मीनाक्षी पाहवा (अंग्रेजी अनुवाद) तथा आपको नाटक की सफलता के लिए हार्दिक बधाई व अभिनंदन।