श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ रहे थे। हम संजय दृष्टि श्रृंखला को कुछ समय के लिए विराम दे रहे हैं ।
प्रस्तुत है रंगमंच स्तम्भ के अंतर्गत महाराष्ट्र राज्य नाटक प्रमाणन बोर्ड द्वारा मंचन के लिए प्रमाणपत्र प्राप्त धारावाहिक स्वरुप में श्री संजय भारद्वाज जी का सुप्रसिद्ध नाटक “एक भिखारिन की मौत”। )
रंगमंच ☆ दो अंकी नाटक – एक भिखारिन की मौत – 5 ☆ संजय भारद्वाज
रमेश- भोसले संभालो खुद को, संभालो। (भोसले को लाकर उसकी कुर्सी पर बैठाता है। भोसले को यों ही छोड़कर अनुराधा को लेकर रमेश तेजी से निकल जाता है।)
प्रवेश पाँच
(अनुराधा और रमेश दिखाई देते हैं। नवप्रभात का कार्यालय दिखाया जा सकता है अथवा खुले रंगमंच का भी उपयोग हो सकता है।)
अनुराधा -अजीब हालत है, अजीब हालत है। अजीब हालत है दुनिया की। सारे के सारे पुरुष एक खास रोग से जकड़े हुए। सब यौनकुंठा के मारे हुए। सेक्स मैनिएक्स! एक खूंखार, हिंसक जानवर छिपा है सबके भीतर।
रमेश- जानवर छिपा है, एग्रीड। लेकिन अनुराधा पशु हम में से हर एक के भीतर है। इसके लिए केवल पुरुषों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जितना हिंसक पशु पुरुष के भीतर है, उतना ही स्त्री के भीतर भी है।
अनुराधा- मैं नहीं मानती।
रमेश- सच्चाई को नहीं मानने से नहीं चल सकता। वैसे अनुराधा, पशु किसे कहती हो तुम?
अनुराधा- एक मनोदशा, एक विकृति, दूसरे के दुख से आनंद उठाने की प्रवृति। वह आनंद शरीर का भी हो सकता है और मानसिक भी हो सकता है।
रमेश- करेक्ट। अनुराधा चित्रे, यही मैं भी समझाने की कोशिश कर रहा हूँ। बहू को तकलीफ देने वाली, चाहे वह शारीरिक तकलीफ हो या मानसिक,… तकलीफ देने वाली सास भी एक स्त्री ही होती है। बहू को अपने अधीन रखकर किए जाने वाले शासन से मिलने वाला सुख क्या औरत के भीतर का हिंसक पशु नहीं है?
अनुराधा- है पर इस पशु का….
रमेश- मुझे अपनी बात पूरी करने दो अनुराधा। ज्यादातर चकलों को, वेश्यालयों को चलाने वाली औरतें ही होती हैं। ये औरतें अपने से कमज़ोर औरतों को मजबूर कर उनसे धंधा करवाती हैं।
अनुराधा-पर यह तो पेट की ज़रूरत है। पेट भरने के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा न।
रमेश- कम ऑन अनुराधा। अपने भीतर के पशु को हम मज़बूरियों का नाम नहीं दे सकते। यों देखा जाय तो जो लोग सुपारी लेकर खून करते हैं, वे सुपारी अपना पेट भरने के लिए ही तो लेते हैं।…पर सवाल यह है कि क्या केवल वे ही भूखे हैं? दूसरे क्यों नहीं करते खून? किसी की जान लेने में आनंद अनुभव करने वाला सुपारी लेने के बजाय सुपारी बेच कर भी जो अपना पेट भर सकता है,… पर नहीं, वह ऐसा नहीं करता। वज़ह भीतर का पशु।
अनुराधा- आई एक्सेप्ट इट। मैं इस सच को स्वीकार करती हूँ पर रमेश इस भिखारिन का किसी स्त्री से संबंध तो आता नहीं। वैसे भी कोई औरत इस भिखारिन को शारीरिक या मानसिक रूप से क्यों प्रताड़ित करेगी?
रमेश- मैं पक्का तो नहीं कह सकता पर लाखों की भीड़ वाले शहर में ऐसी औरतें होंगी ज़रूर जो अपने भीतर के पशु का इस भिखारिन से सीधा संबंध जोड़ पाएँ।
अनुराधा- कहीं संपादक महोदय शहर की कुछ औरतों को अपने इंटरव्यू सीरीज़ का अगला पात्र बनाने की तो नहीं सोच रहे हैं?
रमेश- बिल्कुल सही अनुराधा। एक औरत को यों खुले बदन देखकर केवल मर्द रिएक्ट करेगा, यह ज़रूरी तो नहीं। अपनी सीरीज़ को ज्यादा रोचक बनाने के लिए हम इसमें एक-दो जानी-मानी महिला हस्तियों का नाम भी डाल देते हैं।
अनुराधा- एज़ यू विश सर। मैं अपनी लिस्ट में कुछ महिलाओं के नाम भी डाल देती हूँ।
प्रवेश छह
(अभिनेत्री मधु वर्मा का घर। मधु ट्रैक सूट में है। वह व्यायाम कर रही है। टेप पर कोई अँग्रेजी धुन बज रही है। मधु बीच-बीच में शीशे में खुद को निहारती है, फिर संगीत पर थिरकती है। फिर व्यायाम करने लगती है।)
मधु- (शीशे में खुद को देखते हुए) वाह मधु वर्मा, वाह! क्या बैनर मारा है! खुराना फिल्म्स इंटरनेशनल..।… खुराना फिल्म्स इंटरनेशनल की धमाकेदार पेशकश, ‘एक हसीना’,… एक हसीना है..इन एंड एज़ मधु वर्मा..।.. एक हसीना, मधु वर्मा। … वही मधु वर्मा, जिसके लिए क्रिटिक लिखते हैं कि उसके चेहरे पर भाव नहीं आते। डायलॉग्स ठीक से नहीं बोल पाती।..यू नो शी हैज लॉट ऑफ इंग्लिश टोनिंग…इडियट्स…बिना इंग्लिश टोनिंग हिंदी फिल्म चलती है क्या…?..मधु वर्मा, एक फ्लॉप हीरोइन!. क्या-क्या नहीं किया! हर तरह से कोशिश की। हर किस्म का समझौता किया पर हर मूवी फ्लॉप..!. ज्यादा से ज्यादा बोल्ड रोल किए, ज्यादा से ज्यादा अंग प्रदर्शन किया। पर रिजल्ट… ऊपर से वह ‘मूवी वर्ल्ड’ वाली रचना पूछती है, ‘मधु जी, आपकी इमेज को बिकनी इमेज कहा जाता है। आपको नहीं लगता कि आपकी इस इमेज की वज़ह से आपकी हर फिल्म का प्रोड्यूसर कम से कम एक सीन में आपको बिकनी पहनाना चाहता है। ..यू हैव बिकम अ सेक्स सिम्बल। इस वज़ह से अच्छे रोल आपके हाथ में नहीं आते।’ …हूँ.., सेक्स सिम्बल, माय फुट..। मुझे बिकनी गर्ल कहा जाए या पेंटी गर्ल, तुमसे मतलब?.. गो टू हेल।.. मुझे अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने का हक है। ( शीशे के आगे खड़ी होकर खुद को अलग-अलग मुद्राओं में देखती है। फोन की घंटी बजती है।)
मधु- हैलो हाँ खुराना जी, मैं ही बोल रही हूँ।…बस जरा फिगर मेनटेन कर रही थी। (हँसती है।) जी, आप फिक्र ना करें।…..जी, मुझे अच्छी तरह से आपकी बात याद है।.. यह रेप सीन मुझे इंडस्ट्री में नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा।… यस…या….या…या आई अंडरस्टैंड खुराना जी, मैं जानती हूँ कि मुझे एक बिग हिट की ज़रूरत है।…जी, जैसे आपने बताया था उससे ज्यादा रियलिटी आएगी सीन में।.. आई विल फुल्ली को-ऑपरेट सर.., आई हैव टू को-ऑपरेट सर.., ठीक है, फोटो सेशन नेक्स्ट वीक रख लेते हैं।…ओके…ओके..थैंक्यू सर। (फोन रखती है।)….बास्टर्ड… एक फिल्म हिट हो जाए तो मेरे चारों तरफ अपने आप चक्कर लगाएगा। ( स्क्रिप्ट उठाकर रिहर्सल शुरू करती है।)
मधु- नहीं…देखो…देखो हमका छोड़ दो।… हम एक सरीफ खानदान की औरत हैं। हमने तो कभी आपके कुछ बिगाड़े नहीं।.. कौनो गलती हो गई हो तो माफ कर दें बाबू।.. हम गरीब ज़रूर हैं पर इज़्जतदार हैं।…नहीं… हाथ नहीं लगाना…. हाथ नहीं लगाना।… हमका छोड़ दो… हमका छोड़ दो… हमका छोड़ दो।…. छोड़ दो हमका। ( यहाँ वहाँ भागना, रोना)
(रमेश और अनुराधा का तालियाँ बजाते हुए प्रवेश)
रमेश- वाह मान गए मधु वर्मा। वेरी गुड शॉट विद क्लासिक टच ऑफ सेंटीमेंट्स एंड रियलिटी।
मधु-थैंक्यू।
क्रमशः …
नोट- ‘एक भिखारिन की मौत’ नाटक को महाराष्ट्र राज्य नाटक प्रमाणन बोर्ड द्वारा मंचन के लिए प्रमाणपत्र प्राप्त है। ‘एक भिखारिन की मौत’ नाटक के पूरे/आंशिक मंचन, प्रकाशन/प्रसारण, किसी भी रूप में सम्पूर्ण/आंशिक भाग के उपयोग हेतु लेखक की लिखित पूर्वानुमति अनिवार्य है।
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
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