श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। 

हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ रहे थे। हम संजय दृष्टिश्रृंखला को कुछ समय के लिए विराम दे रहे हैं ।

प्रस्तुत है  रंगमंच स्तम्भ के अंतर्गत महाराष्ट्र राज्य नाटक प्रमाणन बोर्ड द्वारा मंचन के लिए प्रमाणपत्र प्राप्त धारावाहिक स्वरुप में श्री संजय भारद्वाज जी का सुप्रसिद्ध नाटक “एक भिखारिन की मौत”। )

? रंगमंच ☆ दो अंकी नाटक – एक भिखारिन की मौत – 8 ☆  संजय भारद्वाज ?

*प्रवेश दो*

(रमणिकलाल नामक छुटभैया नेता का कमरा। पीछे किसी राष्ट्रीय नेता की तस्वीर लगी हुई है। तिपाई पर शराब के साथ लिया जा सकने वाला मांसाहार है। हाथ में शराब की बोतल है। उससे ग्लास में शराब और सोडा डाल रहा है। मंच के कोने में टीवी सेट है। टीवी की स्क्रीन दर्शकों की विरूद्ध दिशा में है। रमणिक के संवादों और हाव-भाव से पता चलता है वह स्क्रिन पर किसी पोर्न फिल्म  की सीडी देख रहा है। बीच-बीच में शराब पी रहा है।)

रमणिक- आहा! क्या फिल्म है! पता नहीं पुलिस ऐसी सीडी क्यों जप्त कर लेती है? ख़ासतौर पर युवा पीढ़ी को तो… और युवा पीढ़ी ही क्यों, हर आयु की पीढ़ी को देखना चाहिए। कितना ज्ञान बढ़ता है। (दरवाज़े की घंटी बजती है। रमणिकलाल उछल पड़ता है। मांसाहार को अंदर के कमरे में रखता है। जल्दी-जल्दी शरीर पर स्प्रे छिड़कता है। ग्लास-बोतल भी अंदर रखता है। मुँह में कोई फ्रेशनर डालता है। भागकर सीडी बंद करता है।)

रमणिक- यह सीडी कहाँ रखूँ? (छिपा देता है।)  हाँ, यह रामायण की सीडी ठीक रहेगी।…( नई सीडी लगाकर कपड़े ठीक-ठाक करता है। टोपी लगाता है। तब तक दो-तीन बार घंटी बज चुकी हैं।)

रमणिक- आता हूँ भाई, आता हूँ। (दरवाज़ा खोलता है।) आइए, आइए। अहोभाग्य हमारे!  (रमेश और अनुराधा अंदर आते हैं।) पत्रकारिता के विश्व का इतना बड़ा जाना-माना नाम इस सेवक की कुटिया में पधारा है। आइए, आइए। आइए बहनजी, आइए। खड़े क्यों हैं आप लोग? बैठिए न।…बैठिए।.. आहा..हा.. क्या बात है! ऐसा लगता है जैसे साक्षात राम-सीता की जोड़ी हो। रमेश जी, आपकी धर्मपत्नी तो…

रमेश- रमणिकलाल जी, यह मेरी धर्मपत्नी नहीं हैं। यह हैं मेरी साथी पत्रकार अनुराधा चित्रे। नवप्रभात से ही जुड़ी हैं।

रमणिक- हें, हें हें, माफ कीजिएगा बहनजी। बैठा-बैठा रामायण का कैसेट देख रहा था तो मन में राम-सीता ही बसे थे। धन्य हो प्रभु! क्या लेंगे आप लोग?

रमेश- जी कुछ नहीं। मैंने उस दिन आपसे कहा था न कि उस भिखारिन पर आपका इंटरव्यू लेना चाहते हैं।… सो आज चले आए।

रमणिक- कुछ नहीं लें, यह तो हो ही नहीं सकता। (शिकंजी तैयार करता है। साथ ही बातचीत करता रहता है।)… इंटरव्यू की भली कही आपने। इंटरव्यू तो होते ही रहते हैं, आप पत्रकारों की दया से।… अब परसों ही ‘जनतंत्र’ अखबार में इंटरव्यू छपा है हमारा, एकदम बड़े से फोटू के साथ। ….आपने नहीं देखा क्या? वह ट्रेन के सामने रास्ता रोको किया था ना हमने। अपनी जनता वसाहत में पानी की इतनी कमी, इतनी कमी कि पूछो मत। अब हम से जनता के दुख-दर्द तो देखे नहीं जाते तो बैठ गए ट्रेन के आगे।

अनुराधा- लेकिन पानी की कमी का ट्रेन रोकने से क्या संबंध?

रमणिक- अरे बहनजी, यही तो विशेषता है हमारे लोकतंत्र की। अब बताइए कि जनता वसाहत किसकी है?

अनुराधा- जनता की।

रमणिक- और रेल किसकी संपत्ति है?

अनुराधा- जनता की।

रमणिक- हाँ..। तो फिर जनता की वसाहत में, जनता को पानी उपलब्ध कराने के लिए, जनता की रेल के आगे, जनता धरना नहीं दे सकती क्या?… यही तो जनतंत्र है।.. अब देखिए, खुद महापौर ने आकर समझाया, वादा किया कि जलापूर्ति ठीक रहेगी, तभी उठे ट्रेन के आगे से।.. धरने के मामले में वैसे भी अपना रिकॉर्ड है, बैठ गए तो बस बैठ गए।

रमेश-  जी वह तो है, इसीलिए तो आप जैसे जुझारू नेता का इंटरव्यू लेने का फैसला किया हम लोगों ने।

रमणिक- धन्यवाद, धन्यवाद।..ये  लीजिए न।.. अब मुझ जैसे गरीब के घर में और कुछ तो मिल नहीं सकता, इसलिए नीबू-पानी तैयार किया है। ( दोनों को शिकंजी के गिलास देता है।)

अनुराधा- रमणिकलाल जी, आपने उस अर्द्धनग्न भिखारिन को तो देखा ही होगा।

रमणिक-हमने ही क्या, पूरे शहर ने देखा है। ढेर सारे स्त्री-पुरुषों ने देखा है। बहू-बेटियों की यह स्थिति केवल इस राज्य के शासन में ही हो सकती है।

अनुराधा- लेकिन यह दशा केवल स्त्रियों की तो नहीं है। गरीबी से लड़ते कमोबेश हर औरत-मर्द की यही कहानी है। पेट में खाना नहीं, बदन पर कपड़ा नहीं।

रमणिक- आप समझी नहीं बहनजी। मर्द केवल एक कच्छे में रहे तो भी चल सकता है पर बगैर कपड़े कोई औरत ऐसे सरे बाज़ार बैठी हो..,भई नौजवानों पर क्या असर पड़ेगा?.. हमारी बच्चियाँ, बेटियाँ, बहुएँ तो उस रास्ते से नज़र उठाकर भी नहीं  नहीं चल सकती ना।  क्या होगा इस देश की सभ्यता का, यहाँ की संस्कृति का?

अनुराधा- रमणिकलाल जी, यह औरत आपके वॉर्ड एरिया की रोड पर बैठी थी। आपने उसे वहाँ से हटाने की कोशिश क्यों नहीं की?

रमणिक-  कोशिश की थी, कोशिश हमने की थी।… पर पहले तो सोचते रहे कि एकाध दिन में जब भी भीख अच्छी इकट्ठा हो जाएगी तो अपने- आप चली जाएगी यहाँ से।

अनुराधा- फिर?

रमणिक- एक दिन तमाशा हो लिया, बर्दाश्त किया। दूसरे दिन भी वही तमाशा, बर्दाश्त किया। तीसरे दिन सुबह-सुबह पहुँच गए सीधे एसीपी भोसले के पास।..कह दिया उनसे कि ये क्या हाल हो गया है? ये क्या चल रहा है आपके राज में?….हमने भोसले से जो बातचीत की थी, उसके बारे में एक प्रेसनोट भी भेजा था सब अखबारों को।…आपको नहीं मिला क्या? प्रकाशित नहीं किया क्या?

रमेश- हो सकता है कि देर से आया हो। आजकल में प्रकाशित हो जाएगा।

रमणिक- रमेश जी, हमारी न्यूज़ ज़रा टाइम पर प्रकाशित किया करें।.. वैल्यू ही टाइम का है।..अब यह प्रेसनोट तो बेकार हो गया ना। वह भिखारिन ही मर गई।…ख़ैर!…वैसे ये इंटरव्यू कौनसी तारीख को प्रकाशित होगा?

रमेश- रमणिकलाल जी, जरा इंटरव्यू पूरा तो हो लेने दीजिए। अनुराधा के पास अभी कई सवाल है आपसे करने के लिए।

रमणिक- हाँ, हाँ बहनजी पूछिए ना।

अनुराधा- एसीपी भोसले ने क्या कहा?

रमणिक-  भोसले बोला कि नेताजी, मैं आप से पूरी तरह सहमत हूँ।.. पर पेपरों ने उस नंगी के बारे में छाप-छाप कर उसे न्यूज़ बना दिया है। अब अगर हम कोई स्ट्राँग एक्शन लेंगे तो पेपर वाले हल्ला करेंगे।.. कोई ह्यूमन राइट्स वाला ऑर्गनाइजेशन…., ह्यूमन राइट समझते हैं ना, मानवाधिकार वाला संगठन चीख-पुकार करेगा।

अनुराधा- याने पुलिस ने मामला सुलझाने से इंकार कर दिया।

रमणिक- अब भोसले भी क्या कर सकता था!  उसके हाथ बंधे हुए थे।

रमेश- एसीपी भोसले के हाथ बंधे हुए थे पर आपके हाथ तो खुले थे।

रमणिक- तो किया ना, हमने किया।… हम चुपचाप नहीं बैठे।

अनुराधा- क्या किया आपने?

रमणिक-  चौथे दिन हम कुछ कार्यकर्ताओं को लेकर वहाँ गए। रात को करीबन ग्यारह बजे। दिन में जाते तो तमाशा हो जाता,… तो रात को गए। देखा तो वह भिखारिन जमीन पर पसरी पड़ी है। हमने उसे पहली बार अच्छी तरह से देखा। हम तो बस बरस पड़े उस पर। बोल दिया, ” अरी बेशरम, बेहया, ऐसे पड़ा रहना है तो कहीं और जाकर मुँह काला कर। हमारा एरिया काहे गंदा कर रही है।”

रमेश- उसने क्या जवाब दिया?

रमणिक- एकदम बेशरम औरत थी। कोई जवाब नहीं। चुपचाप पड़ी रही। हमने कार्यकर्ताओं से कहा, “यह तो मानेगी नहीं, वापस चलो”…पर कार्यकर्ता भी इस नाटक से दुखी थे। एक नौजवान कार्यकर्ता ने उसके शरीर पर से एक निकरनुमा कुछ पहने थी, वह भी खींचकर दूर फेंक दिया। बोला, “शरम होगी तो अपने आप चली जाएगी सुबह तक।” ( हँसता है।) …और देखिए, जो कोई नहीं कर पाया, वह हमने कर दिखाया। मारे शर्म के सुबह तक सचमुच मर गई वह। (हँसता है।) चलिए इलाके से एक गंदगी दूर हो गई।… अरे बहनजी, आपने नीबू पानी तो पूरा पिया ही नहीं। अच्छा नहीं लगा क्या?.क्या है न कि मैं बीवी को साथ नहीं रखता। राजनीतिक आदमी हूँ, जाने कब क्या पचड़ा हो जाए।… लीजिए ना।

अनुराधा- रमणिकलाल जी, आपने उस भिखारिन को कुछ भीख दी थी?

रमणिक- लो जी, उल्टे बांस बरेली को। हम उसे भीख देंगे? हमारे कार्यकर्ताओं ने तो उसको हिला-डुलाकर भी देखा। कहीं भीख के पैसे हों तो लूट लो, अपने आप चली जाएगी।…पर कमाल की ठग थी साली। पता नहीं पैसे कहाँ छुपाकर रखती थी।

रमेश- एक पर्सनल सवाल। उस औरत को यों खुले बदन देखकर रमणिकलाल के भीतर के मर्द को कैसा लगा?

रमणिक- हम समझे नहीं।

अनुराधा- (भिखारिन की मुद्रा में खड़ी हो चुकी है।)  तो यहाँ समझ लो। आओ..देखो… ऐसी ही थी न वह..?

रमणिक-  हाँ, बहुत खूबसूरत थी वह, बहुत..। ….हमने तो कह दिया कार्यकर्ताओं से कि उठा ले चलो।… हम तो कोशिश भी कर रहे थे पर रोड पर दो तीन गाड़ियाँ आती दिखीं, इसलिए बदनामी के डर से भागना पड़ा।…आहा..क्या थी।…भिखारिन नहीं महारानी थी..।..महारानी, …मेरी महारानी….( रमणिक का आगे आगे बढ़ना, अनुराधा का पीछे पीछे हटना।)

क्रमशः …

नोट- ‘एक भिखारिन की मौत’ नाटक को महाराष्ट्र राज्य नाटक प्रमाणन बोर्ड द्वारा मंचन के लिए प्रमाणपत्र प्राप्त है। ‘एक भिखारिन की मौत’ नाटक के पूरे/आंशिक मंचन, प्रकाशन/प्रसारण,  किसी भी रूप में सम्पूर्ण/आंशिक भाग के उपयोग हेतु लेखक की लिखित पूर्वानुमति अनिवार्य है।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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अमरेन्द्र नारायण

उत्सुकता बनीरहतीहै।वस्तुस्थिति का प्रभावी चित्रण।
बधाई

Sanjay k Bhardwaj

धन्यवाद आदरणीय।