रक्षा बंधन विशेष
श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रक्षा बंधन पर्व पर रचित विशेष आलेख “रक्षा बंधन”।)
रक्षा बंधन
रक्षा बंधन का त्यौहार युगों पुराना है। जिसके स्वरूप का वर्णन पौराणिक कथाओं एवं घटनाओं के रुप में यत्र तत्र मिलता है। यह त्यौहार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। इसीलिए इसे रक्षा बंधन श्रावणी आदि नामों से जाना जाता है। इसके मूल में रिश्तों की मधुर मिठास घुली हुई है। इस दिन बहनें अपने हृदय में भाई के लम्बी उम्र एवं दीर्घायु जीवन की मंगल कामना ले व्रत रखती है, तथा भाई कलाई में रक्षा सूत्र बांधती है।
इतिहास की गहराई में जाये तो रानी कर्मावती ने रक्षासूत्र भेज कर ही चित्तौड़ गढ़ की रक्षा की गुहार लगाई थी, और जौहर कर लिया था, तथा हुमायूँ ने चित्तौड़ की रक्षा की थी। इस प्रकार यह त्यौहार जाति धर्म से परे भावुक रिश्तों पर आधारित है।
यह भी ऐतिहासिक उल्लेख है कि पहले राजा महाराजा ब्राह्मणों द्वारा रक्षासूत्र बंधवाकर रक्षा का दायित्व निभाते थे। पौराणिक घटनाओं में भी रक्षा सूत्रात्मक बंधन का उल्लेख मिलता है। जब इंद्र की पत्नी शची ने अपने तपोबल से रक्षा सूत्र उत्पन्न कर देव गुरु वृहस्पति से इंद्र के हाथों पर बंधवाया था।
शिशुपाल वध के पश्चात सुदर्शन चक्र द्वारा श्रीकृष्ण की उंगली कटने पर द्रौपदी ने अपने आँचल का पल्लू फाड़ कर कृष्ण की उँगली में बाँधा था और कृष्ण ने चीरहरण के समय साड़ी का विस्तार कर द्रौपदी की मर्यादा की रक्षा की। आजकल रक्षा बंधन का त्यौहार प्रतीकात्मक हो गया है। धागों के त्यौहार पर आधुनिकता हावी हो गई है जिससे उसका मूल स्वरूप नष्ट हो रहा है और दिखावा प्रधान हो रहा है।
-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208