हिन्दी साहित्य – रक्षा बंधन विशेष – कविता ☆ रक्षा बंधन ☆ – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

रक्षा बंधन विशेष 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित  कविता “रक्षा बंधन”।)

 

? रक्षाबंधन ?

 

राखी है प्रीति मे पगे उपहार का बंधन

भाई बहिन के अति पवित्र प्यार का बंधन

 

नाजुक हैं पर मजबूत है ये रेशमी धागे

बंधन न बडा कोई भी इन धागो के आगे

सुकुमार उँगलियों का मधुर प्यार है इनमें

कोमल कलाइयों की भी झनकार है इनमें

प्यारी बहिन का भाई पे अधिकार का बंधन। राखी है…..

 

यह रस्म नहीं मन की छुपी आस है इनमें

भाई बहिन के रिश्तों का विश्वास है इनमें

इन धागों से दो दूर के संसार बंधे है

भारत की भावनायें और संस्कार बंधे है

राखी है प्यार भरे दो परिवार का बंधन। राखी है…..

 

भाई बहिन के प्रेम की पहचान है राखी

भावों का एक सुख भरा एहसास है राखी

बन्धुत्व के विस्तार का त्यौहार है राखी

राखी बंधी कलाई का प्रिय प्यार है राखी

बहिनों के मन के सपनों की मनुहार है राखी। राखी है…..

 

है हिंद के इतिहास का एक रंग भी इसमें

जब हिंदू बहिन से बाँधा राखी हुमायूँ ने

राखी थी लाज राखी की रानी को बचाने

धर्मो का मर्म समझ भेदभाव भुलाके

राखी है स्नेह के मधुर व्यवहार का बंधन । राखी है…..

 

जब धरती को हर्षाती हैं सावन की घटायें

मनमोर को वनमोर सा रिझाती है घटाये

रक्षा औं प्रीति के गूँथे कई तार है इसमें

भावों का मधुर रसभरा भंडार है इसमें।

इतना सुखद न कोई भी संसार का बंधन। राखी है…..

 

इन रेशमी धागों में है एक सुख भरा संसार

हर मन में जो भर जाता है सावन का मधुर प्यार

आपस के प्रेम भाव का उद्गार है राखी

सावन के सरस माह का श्रृंगार है राखी

भारत के सदाचार सरोकार का बंधन। राखी है…..

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

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