हिन्दी साहित्य – रक्षा बंधन विशेष – कविता ☆ वीर बिजूखा और जुगनू ☆ – सौ. सुजाता काळे
रक्षा बंधन विशेष
सौ. सुजाता काळे
“हमारी स्कूल महाराणी चिमणाबाई हाईस्कूल, बड़ोदा, गुजरात से जहाँ मैंने पढ़ाई की, हर साल सैनिकों के लिए राखी और पत्र भेजे जाते हैं और विद्यार्थी स्वयं राखी बनाते हैं । राखी के संग मैंने यह कविता लिखकर भेजी है। हे माँ भारती के वीर सपूतों! मेरे शूरवीर भाईयों आपको मेरे शत शत प्रणाम हैं। आपके लिए आपकी बहन की ओर से कविता के रूप में मनोगत प्रस्तुत है। ” – सौ. सुजाता काळे )
वीर बिजूखा और जुगनू
सीना तान खड़े रहते हैं,
सभी दर्द सीने में छुपाकर,
यादों को मन में सहलाते,
बर्फीली श्वेत चादर ओढ़कर ।
दिल में संजोई ममता को
बारिश संग आँसू में बहाते,
देख न पाता कोई उनको,
किस सागर में जाकर मिलते।
कड़ी धूप को चाँदनी बनाते,
कर्तव्य अपना न बिसराते,
कभी बिजूखा या जुगनू बनकर,
आँखों में तारों को सजाते।
बाढ़ में घर कभी डूब रहा हो,
सूखे से खेत भी सूख रहा हो,
माँ भारती की रक्षा के लिए,
अपने खून की चुनरी हैं ओढ़ाते।
हाथ न बढ़ा सकता हैं कोई,
भारत माँ की आँचल की ओर,
छेदते हो गोलों से उनके सीने,
जो कदम उठे भारत की ओर ।
आपकी कृतज्ञ बहन,
सुजाता काळे …
पंचगनी, महाराष्ट्र।
9975577684